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________________ Man Aradhana Kendra Shri M श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२३१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas संकाए । बंधू समाउलो तेहिं करंडगोवणपरो दिट्ठो ॥ १९२॥ किमिति तेहिं पुच्छिय तुम्ह भया नियधणं ठएमुत्ति । जंपता सकरण्डा नीया ते मंतिपासंमि || १९३|| तु परिखिय अन्ने पहिए मंती भणेइ ते के भे १। कत्तु वा किमिणंतिय ते बिंति अवं|तिओ पत्ता ॥ १९४ ॥ चलिया मो पुवज्जियघणमहुणा गहिय लाडदेसंमि । मंती भणेइ जइ इय कहेह भो लहु किमित्थडत्थि ? ||| १९५|| खुहिया तमजाणंता भणंति ते चोरिओ इमो जइ ता । उग्घाडिय जोइजउ तमुग्धाडइ तो सयं मंती ॥ १९६ ॥ पिच्छिय करंडमज्झे निवनामंकिय विभूसणे सरह । चिरनट्टधणाणमिणं निहीकयं नूणमेएहिं ॥ १९७ ॥ एएहिं ताडिएहिं चोरा लहिहिंति चिंतिउं सत्थो । सबो धराविओ सो नरेहिं ताडाविया ते उ || १९८ ।। गाढप्पहारविहुरा भणति ते मो समागया कल्ले | सत्थेण | जइ न एवं मारिज वियारिडं ताण ।। १९९ ।। अह बंधुदत्तमुद्दिस्स ठाणपुरिसो पर्यपए एगो । सत्थे इमंमि पंचमदिर्णमि दिट्ठो | इमो खलु मे ||२०० || जाणसि इमंति पुट्ठो सत्थाहो मंतिणा भणइ सत्थे । एरिसए कप्पडिए वहमाणे जाणई को णु १ ॥ २०१ || तं सोऊणं कुविओ मंती ते भाइणिजमाउलए । नरयाबाससमाणे कारागारंमि पखिवई || २०२ ॥ तत्थ य गिरिथलनयरे काराऍ ठियाण तेसि दुहियाणं । माउलभाणिजाणं वोलीणा कहवि छम्मासा || २०३ ।। पत्तो महानुयंगो निसाऍ आरक्खगेहिं अह तइया । परिवायगो सदवो बंधिय मंतिस्स उवणीओ || २०४ || परिवायगाण न घणं एरिसमिय तकरो धुवं एसो । इय निच्छिऊण मंती आइसइ तयं वहनिमित्तं ॥ २०५ || नीयंतेण वदत्थं अणुसयमाणेण तेण चिंतित्ता । होइ न यन्नहा रिसिभासियंति पयडंपि तं भणियं ॥ २०६ ॥ तं सोउ भणइ मंती किमिणं १ स भणइ किमित्थ मे कर्ज १ । मं मुत्तुमिह न अन्नो चोरो ता कुणह जं इट्ठ ||| २०७|| नवरं सर्व्वं गिरिनइआरामाईसु अस्थि हरियधणं । तं अप्पिय धणियाणं निहणिअह मं तओ तुम्मे ।। २०८ ।। ओमंति For Private And Personal sri Gyanmandir बन्धुदत्तकथा ॥२३१॥
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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