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________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥२३२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailaspuri Gyanmandir मंतिणुत्ते सवं दरिसह विणा करंडं सो । मंती भणइ इमा का चिट्ठा ते दंसणविरुद्धा १ || २०९ || परिवायगोऽवि जंपर विसयासताण निषाण अहो । इणमेव कम्ममुचिअं जइ अच्छरियं तओ सुणसु ॥ २१० ।। इह पुंडवद्धणपुरे आसि सुओ सोमदेव विष्पस्स । नारायणोति कइया स नियइ चोरित्ति धरिय नरे || २११ || निहणह महाभुयंगे इमेति भणियंमि तेण निकरुणं । हा अन्नाणं कट्ठेति भण तया मुणी एगो ॥ २१२ ॥ किमनाणंति तओ तेण नमिय पुट्ठो मुणी भणइ जं भो । पीडाकरं परस्स उ असंतदोसाधिरोवणयं ॥ २९३ ॥ पुजियकम्मवसा पडिया वसणंमि जइ इमे ता भो । पयडसि एसु असतं महाभ्रुयंगत्तदोसं किं १ ॥ २२४ ॥ अनं च- पुअियफलसेसं लहिहिसि अचिरेण ता अलियदोसं । मा देहि परेसु तओ पुट्ठो किं किति? तेण मुणी || २१५ || अइसयनाणी स मुणी करुणारससागरो भणइ आसी । गंजणपुरंमि विप्पो आसाढो से पिया रज्जू ॥ २१६ ॥ पुत्तो य चंददेवो पिउणा वेओ पढाविओ सो उ । अइविउसमाणिणं तं बहु मन्नइ वीरसेणनिवो || २१७ || परिवायगो अहेसी जोगप्पा नामओ तर्हि तस्स । भत्ता उ बालविहवा वीरमई विणियसिट्ठिसुया ||२१|| एसा उ गया सिंहलमालिएण सह दइवओ उ तंमि दिणे । जोगप्पावि अकहिउं निस्संगता कहिंचि गओ १ ।। २१९ ।। अह कत्थवि वीरमई गयत्ति जायं पुरंमि सयलेऽवि । जोगप्पणा सह गया नूणं चिंतइ स विप्पसुओ || २२० || रायकुलेवि गिराए तीए जंपइ स एवमेवंति। दाराइसंगरहिओ सोति निवृत्तेऽवि भणइ इनं ॥ २२९ ॥ इत्तोच्चिय परदारे गिव्हइ पासंडधारओ सो उ । तं सोउ जणो जाओ धम्मे मंदादरो धणियं ||२२२|| तो जोगप्पा वज्झो बिहिओ परिवायगेहिं अनेहिं । कम्मं तिवविवागं निकाइयं चंददेवेण ॥ २२३ ॥ तो मरिउ एडिको जाओ कुल्लागसभिवेसे सो। तकम्म दोसओ तत्थ कुहियजीहो दुहेण मओ || २२४|| कुल्लागस्सऽडवीए होउं जंबू मओ कुद्दियजीहो । जाओ अ उम्भनिववारवेसका मज्झयापुतो For Private And Personal बन्धुदत्तकथा ॥२३२॥
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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