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________________ Shri a n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai s uri Gyanmandir नमस्कारे विजयनप: श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥२०२॥ शाय्यों येषां ते सुमहार्थाः नमस्कारा-मंगलवृत्तानि, कियंतश्चैते भण्यते इत्याह-एको द्वौ त्रयो वा यावदुत्कष्टतः अष्टोत्तरं शतं, एवं यथायोगं नमस्कारान् भणित्वा पश्चाद्यथाविधि प्रागुक्तखरूपं प्रणिपातं कुर्यात् , तथा चागमः-"पयचेण धूवं दाऊण जिणवराणं अट्ठसयविसुद्धगंथजुत्तेहिं अपुणरुत्तेहिं महावित्तेहिं संथुणई' विजयकुमारवत् , तत्कथा चैवम् इह अस्थि हथिणपुरे विजियऽन्नबलो विजयबलो राया। सोहग्गसुंदरी तिलयसुंदरी दोय से भजा ॥१॥ पढमाइ पउमनामो पुत्तो बीयाइ विजयअभिहाणो । बालोचियकीलाहिं कीलंता दोवि वहूति ॥२॥ कइयावि तिलयसुंदरीदेवीइ जलोदरं ददं जायं । विहिया बहूवयारा मणपि जाओ परं न गुणो ॥३॥ ता वुन्नमणाइ अणाइ अंसुपुन्नाइ पभणिओराया। सामिय! म कारावसु परलोयहियं पसीय लहुं ॥ ४ ॥ भणइ निवो दीणमुहो किं इमिणा मज्झ देवि ! रजेण? । किं वा चउरंगवलेण जीविएणावि किं अहवा? |५|| जं सुयणु! तुज्झ विरहे ता तह काहं अहं पयत्तेण । जह तं होसि अरोगा सजीवियपि दाऊण ॥६॥ इय पणयपउणवयणेहि पिययमं संठवेवि नियगेहे । रन्नाऽऽगम्म सुमरिया कुलदेवी भणइ नरनाहं ॥७॥ किं सुमरियऽम्हि रायाऽऽह पसीय दइयं करेसु नीरोगं। देवी-सक्केणवि नहु सक्का देवी काउं अरोगत्ति ॥८॥ जं पुन्वभवे जीवेणऽणुट्टियं रागदोसदुहेण । अन्नाणपरिगएणं च असुहकम्मं अणिट्ठफलं ॥१॥ तं ओसहेहिं विविहेहिं विबुहनिवहेहिं दाणवगणेहिं । अवहरिलं नहु सका अवेइयं निययदेहेण ॥१०॥ राया जंपइ भयवइ ! इमीइ किं दुक्कयं कयं पुत्विं ? । देवी भणेड़ वंगाविसए नयरे पउमसंडे ॥११॥ अभयकुमारो सिट्ठी संतिमई नाम आसि से भजा । दुन्निवि जिणधम्मपरा गुरुजणसुस्सूयणरया य॥१२॥ अह संतिमई केणवि विसमपओगेण विरसभावगयं । जाणंतीविहु अन्नं धम्मजसमुणिस्स वियरेइ ॥१३ ॥ सोऽवि उवस्सयमा ॥२०२॥ Withsantalilai MALAIMIMIRAENM n For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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