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________________ www.kobatirth.org धर्म० संघाचारविधी ॥२०३॥ Acharya Shri Ka y amandit | ग्गम्म गुरुसमीवे पडिक्कमिय इरियं । करमत्तदाइवावारमाइ विहिणा समालोए ॥१४॥-सरिऊणं जिणनाहे गुरुगणगुरुणो तम-1 नमस्कारे | उनमहगुरुणो । कयवालगिलाणाईचिंत्तो भुत्तुं समारद्धो ॥१५।। अह सवियारे परिवागदोसभावाउ तंमि आहारे । भुत्तमि तस्स विजयनृपः समणाहिवस्स देहमि संकेता ॥१६॥ अइदुमहदाहवेयण जराइसाराइमाइणो रोगा। साहूहि य पडियरिया जाया कहकहवि पउणतणू ॥१७॥ पडिबोहिय बहुयजणं परिकम्मिय अप्पयं च जिणकप्पे । पजंतकयाणसणा गुरुणो सुरलोयमणुपत्ता ॥१८॥ संतिमई दुट्ठमई अचंतविरुद्धभत्तदाणेण । अञ्जियगिरिगरुयकिलेसजालजलणुजलियदेहा ॥१९॥ नरयतिरिक्खगईसुं निंदियजाईसु दुसहदुहकलिया । दाहजरकाससासाइपरिगया भमिय भूरिभवे ॥२०॥ दारिद्दकुले जाया वड्डुकुमारीवि केणवि अणूढा । वेरग्गगया गिहियमहबया विहियविविहतवा ।। २१ ॥ मरिऊणं सा जाया तुह भजा तिलयसुंदरी एसा । पुवकयदुक्कयवसा रोगेणिमिणा विणस्सिहीहि ॥२२॥ इय जंपिअ कुलदेवी तिरोहिया तं निवो कहइ सत्वं । दइयाइ सावि सरिउं पुत्वभवं झूरए हियए ॥२३॥ हा पाव जीव ! किमिमं तए कयं अप्पणा अणत्थकरं । जं तह अणुचियभत्तप्पयाणओ अज्जियं पावं? ॥२४॥ वरमणलंमि पवेसो अहिमुहकुहरे वरं करो खित्तो। वरमिह मियारिदाढाकडप्पकंडूयणं विहियं ॥ २५ ॥ न उणो अविमरिसिय-11 वत्थुसत्थकरणं अणत्थसयजणगं। तो सरसुजीव! इत्तो जिणधम्म पुश्वपडिवनं।२६।।इय देवी दुचरियं भुज्जो भुज्जो पुराभवसमुत्थं । निदंती संवेगं परं गया राइणा भणिया ॥२७॥ देवि ! कुलदेविकहिओ वुत्तंतो अवितहो किमेसुत्ति । तीए भणियं सामिय ! सबमिणं अवितहं नूणं ।।२८।। ता इत्तो परभवपत्थभूयकिच्चंमि उजमो जुत्तो। रना पयंपियं देवि! कुणयु | जं तुज्ज्ञ पडिहाइ ॥२९॥ देसु धणं धम्मत्थं सत्तसु खित्तेसु पुनखित्तेसु । दीणाईणं च तहा करेसु अनपि करणिज्जं ॥३०॥ सो२ ०३॥ For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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