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Gyarmandit
श्रीदे
श्रीदत्ताकथा
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चैत्यश्रीधर्म संघा चारविधी ॥१६५।।
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Acharya Shri Kaiu | सा गंतुं तत्थ मुणिं तं नमेई तेण पुणो । दिमंमि धम्मलाहे हरिसियहियया भणइ एवं ॥६७|| जइवि अजुग्गा भयवं! निन्भग्गाऽहं | तहवि किंपि उबइसह । जेणं न होमि पुणरवि भवंतरे एरिसी दुहिया ।।६८॥ तो तीइ जुग्गयं सो वियारिउं धम्मचकवालतवं । उवइसई चिइवंदणविहाणपुव्वं सयलसुहयं ।।६९।। तह तेणुत्तं भद्दे ! इय धम्मं तुह सयावि साहीणं । विहीणा साहंतीए होही दुहमेरिसं न पुणो॥७०||तो सिरिदत्ता इत्थं पभणिय नमिउं मुणिं गया सगिहं । विहिणा बंदिअदेवे आरंभइ तं तवं काउं॥७॥ तहिं कुणइ अट्ठमदुगं पढमं तो सत्ततीस उववासे। अह तप्पभावओ सा सुभोयणं लहइ पारणए ॥७२॥ तवचिइवंदणनिरयत्ति तीइ तह | देइ अडसड्दजणो । वरवत्थाणि तहा कम्मवेयणं दुगुणतिगुणंपि ॥७३॥ कइयाइ पडियनियघरकुडेगपएसओ बहुदविणं । सा लहइ तेण कुणई उज्जवणं तस्स सुतवस्स ।। ७४ ।। तबअंतपारणदिणे दिसावलोयं विहेइ जा ताव । मासक्खवणकिसंग सुब्बयसाहुं नियइ इंतं ।७५।। हरिसंसुपुन्ननयणा तं पडिलाहइ तओ गए तंमि । धन्नमना मुणिदत्तसेसभत्तेण पारेइ ।। ७६ ॥ अह सा गंतुं सुव्वयसाहुं नमिउं गहेवि गिहिधम्मं । दसणमूलं पालइ कित्तियकालं निरइयारं ॥ ७७ ।। कइयाइ कम्मवसओ चिंतइ जिणधम्मफलमिहप्पवरं । जं गिजइ किं तु तयं सच्चं होही ममवि एवं? ॥७८॥ नजइ न किंपि तह इह पयाहिणादिसु गहाइभमणफलं । सुवति य बहुसामन्नवंदणा लद्धपवरफला ॥७९॥ इच्चाइ विचिगिच्छा जं जाया तीइ तारिसे सक्खं । दिद्वेवि हु धम्मफले तदहो भवियचया बलिया ॥८०॥ ततो सिढिलियधम्मा विहिकरणअणायरा य सा कइया। सोउं सबजसमुर्णि समागयं वंदिउंचलिया ।।८१॥ दडु विमाणारूढं खयरदुगं अंतरे तओ वलिउं । जायणुरागा वररूवमोहिया सा गया सगिहे ॥८२।। णालोइयपडिकंता सा मरिउं कणयसिरी तुम जाया । पियमरणधुविरहाइ पाविया तेण दोसेण ॥८३॥ यदागमः-"जह चेव उ मुक्खफला
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॥१६॥
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