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________________ Shri Me i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal u ri Gyanmandir श्रीदे चेत्य-श्रीधर्म संपाचारविधी ॥९२॥ उपयुक्तस्थानानि MEHRARUPALI antali BulleluniaNMETAILEHit IITHI PanasaluminuRNIMATIAHINDRAPARISHAI R ATRAINIPA | पूजासद्भावभावितया सर्वदा सर्वोपयोगित्वादिति ज्ञापनार्थ पृ. ६६ प्रत्यन्तरेऽधिकं तेसु पुरेसु समासु य नमिविनमीहिं फुरंतभत्तीहिं । ठविओ सिरिरिसिहजिणो धरणिंदो नागराया य ॥८१॥ आवश्यकचूर्णिः-'पुरेसु भयवं ऊसभसामी देवयं ठावि' 'तं पूयंति तिसंझं झायंति सया अवंझफलमुसहं । अच्छउमत्थं छउमत्थवत्थसुत्थं थुगंतेवं ॥ ८२॥ सुइकसिणचउत्थीए उत्तरसादाहिं जो सुरिंदेहिं । कहिओ मरुदेवीए ओयरिओ भावितिजयपहू ॥ ८३ ॥ चित्तकसिणहमीए जं जम्मणमजणक्खणे सव्वे । सुरसेले भत्तीए हविंसु पूइंसु देविंदा ॥ ८४ ॥ जेण हरिविहियरजामिसेयविहिणा अहेसि जयपहुणो। इह वसुमई व सुमई सुनयसहाणा सणाहा य ॥८५ ॥ रजावसरे चिरधरियनलिणिपत्ताभिसेयसलिलेहिं । मिहुणेहिं ण्हवणगेहि व जप्पयपउमा य अभिरुहया ||८|| नाणं वरविन्नाणं कलाउ सकला जओ पहुत्तं सा। रजं पहुत्तसझं पावेसि जणो य सयणो य ॥८७॥ लोयंतिमग्गणा इव नमजणा सजणा न के हुजा। संवच्छरियमवुच्छ किमिच्छियं जस्स दितस्स ।। ८८॥ चित्ताइमट्ठमीए महया महयामि गिहिरे जंमि । के के न बुहा विबुहा महिमं महिमंडले कासी ॥८९॥ सो जयउ दुविहमोणो अजो अब्जे जणंतुऽणजेवि । कइया पुण दच्छामो तं तिजइंदं तिजयभाj॥९० ॥ तेण अदेवावि जणा देवाविव दिवरिद्धिगो विहिया | होऊ तया य सयाविहु नमो नमो नमिरअमराय ॥११॥ तत्तो तत्ततवाओ हुत्था सत्थावि | अत्थ सुकयस्था। तस्सेव किंकरा मो दासा पेसा य मिच्चाय ॥९२॥ तमि छउमत्थवत्थे विहरते महियलं पवित्र्तते । वरधम्मकित्ति पत्ता होउ सुभची सया अम्ह ॥ ९३ ।। इय सत्तविभत्तिविभत्तिभत्तिभत्तीह संथुओ रिसहो । वियरउ संपइ संपइ सयावि भर्ति | गयविभत्ति ॥ ९४॥ पृ. ९५-९६ ९२॥ For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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