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________________ ShiMHOW Aradhana Kendra www.kcbalirth.org श्रीदे० धर्म० संघाचारविधौ ॥४०५॥ Achey Shri Kates armandie जोगविरइनिमित्तमुत्तं जिणेहिं सामइयं । दसपमुद्धिनिमित्त चउवीसथओ विणिहिटो ॥६०॥ गुणवंताण गुरूणं पडिवत्तिनिमित्त- श्रीदत्तमित्थ वंदणयं । अइयारविसुद्धिनिमित्तमाहियं फुडं पडिकमणं ॥ ६१ ॥ चारित्तनाणदंसणसुद्धिनिमित्तं तु निययउस्सग्गा । पाव- चरित्रम् | क्खवणनिमित्तं कीरइ इरियाइउस्सग्गो ॥६२॥ वंदणमाइनिमित्तं सुदिद्विअमराण सुमरणनिमित्तं । चिइवंदणउस्सग्गा कीरंतऽन्नेवि | बहुहेऊ ॥६३।। खण्हाछेयनिमित्तं पच्चक्खाणंति सोउ मुणिवयणं । वरुणो संवेगगओ तकरणेऽमिग्गहं लेइ ॥६४॥ कइयावि पमाइल्लो माइल्लो बहुयलोयपचक्ख । आवस्सयं विसुद्धं करेइ विवरीयमिहरा उ ॥६५॥ चिइवंदणाइ किचं सव्वंपि समायमायरिय वरुणो। पजंतेऽवि हु तदकयपडियारो वंतरो जाओ॥६६॥ तो चविय तेण मायादोसेणं कीर भद्द ! तं जाओ । इय सोउ सुनो सुमरियपुव्वभवो विन्नवइ साहुं ॥६७॥ भयवं! किमिण्डि कीरइ ? कीरोऽहं तुम्ह पायसेवाए। दरमजोग्गो नय सव्वविरइरयणस्स जुग्गम्हि ॥६८॥ नय तिरियजीवियब्वे रमह मई मज्झ नेव पहु! सको । इमिणा तिरिदेहेणं अकलंको काउ जिणधम्मो ॥६९॥ ता पसिय कहसु पहु! मज्झ किं तित्थं सुप्पस्सरथमच्चत्थं । उज्झामि जत्थ जीयं ? भणइ मुणी भद्द! विमलगिरी ॥७०||जंतत्थ पढमचकिस्स नंदणो पढमजिणवरविणेओ। सिद्धो पुंडरियरिसी सहिभो मुणिकोडिपणगेण ॥ ७१ ॥ नमिविनमिखेचरवरा जत्थ य सिद्धा दुकोडिमुणिजुत्ता । जत्थऽनाउवि सिद्धा असंखया समणकोडीओ ।। ७२॥ जो रिसहाइजिणाहिवनिम्मलकमकमलजुअलफ रिसेणं । सययं पवित्तसिहरो सो विमलगिरी महातित्थं ॥७३॥ (प्रत्यंतरे-अपरं च-सुयधम्मकित्तियं तं तित्थं देविंदवंदियं पवरं । पाहुडए विजाणं देसियमिगवीसनामं जं ॥१॥ विमलगिरि१ मुत्तिनिलओ २ सित्तुञ्जो ३ सिद्धखितु ४ पुंडरिओ ५। सिरिसिद्धसेहरो६ सिद्धपचओ ७ सिद्धराओ य८ ॥२।। बाहुबली९ मरुदेवो१० भगीरहो११ सहसपत्तु१२ सयवत्तो १३। कूडसयठुत्तरओ |||४०५॥ S E For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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