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________________ Shri Mare Virradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kam u i Gyanmandir श्रीदे धर्मरुचि कथा ॥ १८॥ यश! परिट्टावसु इमं भुंजसु गिण्हित्तुमनमाहारं। मा पुण इममि भुत्ते मरणमकालंमि पाविहिसि ॥ १९ ॥ तो गंतु चैत्यश्री डिले सो तस्स लवं खिवइ जाव ता सहसा । बहुकीडियासहस्सा समागया नेहगंधेण ॥२०॥ जा जा उ तयं मक्खेइ तक्खणे धर्म संघा-A गयह खयं सा सा । तं पासित्ता चिंतइ धम्मरुई सुद्धधम्मरुई ॥२१॥ एगलवेणवि एयस्स जंति जइ जंतुणो मरणमेव । सम्बंमि चारविधौ || परिद्वविए हा कहमेए भविरसंति ? ॥२२॥ ता इमिणाऽऽहारेणं वरं विणस्सउ ममं चिय सरीरं । बिद्धसणधम्ममिणं पुव्वं पच्छा व जं ॥१३६॥ हेयं ।।२३।। किंच-कृमयो भस्म विटावा,निष्ठा यस्येयमीदृशी। स कायः परपीडाभिः,पाल्पते ननु को नयः ॥२४॥ तथा-निरर्थका ये चपलस्वभावा, यास्यत्यवश्यं स्वयमेव नाशम् । त एव यांति क्रिययोपयोग, प्राणाः परार्थे यदि किं न लब्धं? ॥२५|| अपिन-इकंचिय इत्थ वयं निद्दिष्टं जिणवरेहिं सबेहिं । तिविहेण पाणिरक्खषमवसेसा तरस रक्खट्ठा ॥२६॥ इय चिंतित्ता स समत्तसत्तसंताणरक्खणासत्तो। नियजीवियनिरविक्खो भक्खेइ तयं महासत्तो ॥२७॥ जओ-नियपाणे परपाणेहिं पाणिणो पालयंति सब्वेऽवि । परपाणे नियपाणेहिं कोइ विरलुच्चिय जियंति । २८॥ | खणमितेणं तेणं परिणममाणेग वेयणा विउला । विहिया तस्स सरीरे तिव्वा कडुआ दुरहियासा ।।२९।। तए णं से धम्मरुई अणगारे अखमे अबले अविरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिजमितिकटु आयारमंडगं एगंते ठवेइ, एगंते ठवेत्ता थंडिल्लं पडिलेहेइ, थंडिलं पडिलेहिता दम्भसंथारगं संथरेइ, दम्भसंथारगं संथरेत्ता दम्भसंथारगं दूहइ, दम्भसंथारगं दुहित्ता पुरच्याभिमुहे संपलियंकनिसने करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी-नमोत्थुणं अरिहंताणं जाव संपत्ताणं, नमोत्यु णं धम्मघोसाणं थेराणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसयाणं, पुदिपि य णं मए धम्मघोसाणं घेराणं अंतियं सव्वं पाणाइ rammamath RAHARPARENDRA a mom ॥१३६॥ For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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