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________________ IAWL.. Shri Margo Win Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailal i Gyarmandir m श्रीदे. चैत्यश्री-|| धर्म संघाचारविधी ॥१८८॥ ammHARI imali अनदिणे अवहरिया अणंगसिहनामखयरेण ॥५९॥ तो पुक्करिअं सहिआजणेण उप्पिच्छ पिच्छ नणु ताय ! । खयराहमण केणवि | मरसारकथा निजइ गयणमि सीलवई ॥६०॥ तं सोउ सोयविहुरं आणंदनिवं कहंपि संठविउं । उप्पइओ मणिचूडो तप्पिट्ठीए नहषहमि ॥६१॥ | रे ठाहि ठाहि अविदिनकन्नयाहरणसज निल्लज्ज । इअ तजंतो पत्तो तो दोवि भिडंति ते सुहडा ॥॥ तेसिं जुझताणं सीलवई | निवडिआ विमलसेले । अन्नुन्न पहरिय ते उ दोवि पंचत्तमणुपत्ता ।। ६३॥ अह सीहरुद्दसद्दलरुद्दभयभेरवं पएसं तं । दटुं भयलोललोयणतारा पलवेइ इय बाला ॥६४॥ हा ताय ! तायसु ममं हा जणणि जणसु झत्ति मह सारं । हा हा नरचूडामणिमणिचूड गओऽसि कमवत्थं ? ॥ ६५ ।। जं जीव ! कयं तुमए पुत्वभवे तं मुहागयं इहि । परिदेविएण तो किं इयऽप्पणा संठवइ अप्पं ॥६६॥ न य बंधुणो न पहुणो न य सुहिणो पक्खवाइणोऽवि परा। कजं न सरइ विमुहे विहिमि दिहतए सक्खं ॥६७।। ताइक चिय सुकयं ताणं सरणं जियाण इत्यत्ति ।चिंतिय एगपएसे सा तत्थालिहइ जिणपडिमं ॥६८॥ तं झायंती निच्चं तिविहाए वंदणाएँ वंदंती । हत्थसयमज्झभागे निम्मियदेसावमासिवया ॥ ६९ ॥ तत्थट्टिअतरुनिवडि अफलभरसरसलिलधरियनियपाणा | उग्गतवसोसियंगी अंगीकयविविहवयनियमा ॥ ७० ॥ जीवियमरणेसु समा समाहिणा गहियअणमणा कइया । जा चिट्ठइ सा बाला मुमरंती पंचनमुकारं ॥ ७१ ॥ तो तेण पएसेणं गच्छंतो सासए जिणे नमिउं । तं नियइ कोवि खयरो गसिजमाणं अयगरेणं ॥७२।। तो सो फुरंतरोसो आकडिअउग्गमंडलग्गो य । जा तं कयंतभीसणदेहं हयअयगरं हणिही ।।७३।। ता करुणाभरमंथरगिराइ बाला भणेइ अहहहहा । एयस्स मज्झ तणुणो कए सया पडणधम्मस्स ॥ ७४ ॥ कहकहनि पत्तभक्खं जीविअअभिकंखिरं दुहक्कंतं । अयगरमिमं वरायं मा मा मारेसु खयरवर ! ॥७॥ किंच-अथिरेण थिरो समलेण ॥१८८॥ For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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