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________________ Shri M www.kobatirth.org श्रीदे० चैत्य श्रीधर्मसंघाचारविधी ॥१८७|| immgohamments ४५॥ भुजो इय अमायं कयाविन I Imamitmetim m त सप्पुरिसा। सुरहेइ चंदणतापराधिनि, सणं य a h Aradhana Kendra Acharya Shri Kaital Gyarmandir निवइंमि सीहसेणे तह उचिअं असणपाणाई ॥ ४३ ॥ रहिउ गओ सदेसं पयावसूरो तहा निवा अने। निअनिअधुध आणित्तुं मरमसारकथा दिति परिणेइ कुमरोऽवि ॥४४॥ कइयावि रयणसारो पयावस्रेण निवइणा भणिओ। पहु! कट्टपंजराओ मुअसु इमं सीहसेणनिवं ॥४५॥ भुजो इय अनायं कयावि नहु काहिई धुवं एसो। सप्पुरिसाण य कोहोजह हुज परंपणामंतो ॥४६।। अवियअबराहकारयमिवि जणे सुहं चिय कुणंति सप्पुरिसा। सुरहेइ चंदणतरू परसुमुहं छिजमाणोवि ॥४७॥ अनं च-उपकारिणि वीतमत्सरे, सदयत्वं यदि तत्र कोऽतिरेकः । अहिते सहसाऽपराधिनि, सणं यस्य मनः सतां स धूर्यः ॥ ४८ ॥ इय बहुविहं कुमारो भणिजमाणोऽवि तेण अनेहिं । निवईहि देइ न किंपि उत्तरं जंति इय दिवसा ।। ४९ ॥ तत्थऽनदिणे चउनाणसंजुओ बहुसुसीसपरिवारो। सिरिविमलयोहसूरी दूरीकयतमभरो पचो ॥ ५० ॥ पचा महया भडचडगरेण निवकुमरपमुहबहुलोआ। गुरुणो नमिय निसमा इय सूरी कहइ धम्मकहं ।।२१।। “कोहो पीई पणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्चाई नासेइ, लोभो सबविणासणो॥५२।। कोहो य माणो य अणिग्गहीया,माया य लोहो व पवढमाणा। चत्वारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाई पुणब्भवस्स ।।१३।। उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे। मायं चऽजवभावेणं, लोभं संतोसपोसओ(ओ जिणे)॥५४॥"अह समए कुमरवरो पुच्छइ मह सीहसेणनरवडणा । को इह विरोहहेऊ? भणइ गुरू सुणसु भो भद्द! ॥५५|| आसी पुच्चविदेहे पुक्खलवईविजय पुंडरिणीए। आणंदो नाम निवो दईआ पउमावई तस्स ॥५६॥ पुत्ती| य विमलसीला सीलवई नाम सा सिसुत्तेऽवि । जिणचिहवंदणनिरया लट्ठा जइणसमयंमि ।।५७॥ तस्स यरनो विइअंब आसयं आसि खयरमणिचूडो। सो पेमवसा मुत्तुं नियनयरं ठाइ निवपासे ॥५८॥ भवणोवरिं कीलंति सहिया सहियाजणेण सीलबई।। ॥१८७॥ h ammarAIHIRANAMIKANERINAR a IBILERTAINMENT IAANTIPAHIRIANSHIPPAIDAINIK For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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