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________________ Shri Mahave train Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashamersuri Gyanmandir प्रभावती कथा श्रीदें. चैत्यश्रीधर्म संथाचारविधौ | ॥४४४॥ तुम पंचसेलेपहू ॥१२॥ किमहं करोमि ! कत्थन्वयामि ! पंतओ इमो ताहि । चंपुजाणे नेउं मुको करसपुंडे काउं ॥१शा उवलक्खिय लोएणं पुट्ठो सो कहइ निययवुत्तंतं । सुमरंतो ताओ अग्गिसाहणं काउमाढतो ॥१४॥ जिगपवयणकुसलेणं नाइलसड्डेण | तस्स मित्तेणं । सो भणिओ धम्मचिय कामस्थीविहु कुणसु भद्द! ॥१५॥ यतः-"धनदो धनार्थिनां धर्मः, कामदः सर्वकामि| नाम् । स्वग्गापवर्गयोधर्मः, पारंपर्येण साधकः ॥१६॥"इय वारिओवि तेणं सनियाणो इंगिणीइ सो मरि । जाओ पणसेलपहू पव्वन्जिय नाइलोऽवि मओ ॥१७॥ जाओ अच्चुयदेवो अह नंदीसरि सुराण जंताणं । पुरओ गायंतीओ हासपहासाओ चलियाओ ॥१८॥ सो ताहि भणिओ पडहवायणे इच्छए न दप्पेण | पडहो गले विसग्गो तस्स न उत्तरइ कहकहति ।।१९।। तो ताहि सो | भणिओ इहऽप्पणो सामि! एस अहिगारो। अह वायंतो गच्छइ पडहं ताणं सुराण पुरो॥२०॥ तं दठ्ठ नाइलसुरो नियमित्तं ओहिणा | नियंरूवं। तब्बोहकए दंसइ न चयइ निइउं स दटुंपि।।२१।। सो संहरिय सतेयं जंपइ भो भद्द ! मं वियाणासि ?। सो आह सकपमुहे | देवे को नणु न याणेति ? ॥२२॥ अह सावगरूवं से दंसिय तं पइ सुरो भणइ मित्तं । जिणधम्मं अकरिय जलणसाहणं कासि तं | मूढ ! ॥२३॥ तुह वेरग्गेण अहं जिणदिक्खं काउ अच्चुए जाओ। अमरो तं सोउ इमो अणुतावा भणइ नियमित्तं ॥२४॥ इण्हि | मह कहसु किच्च स आह गिहवासि चित्तसालाए । उस्सग्गठियस्स तुमं कारसु वीरस्स वरपडिमं ॥ २५ ॥ जेण तुमं अण्णभवे सुबोहिबीयं लहेसि भो भद्द ! । दारिदं दोगचं दीणत्तं नेव पाबेसि ॥२६॥ तं सोउ विज्जुमाली तुट्टो नाइलसुरस्स नमिय पए। खत्तियकुंडग्गामे गंतुं दटुं महावीरं ॥ २७ ॥ गंतुं महहिमवंते छित्तुं गोसीसचंदणं पवरं । वीरस्स काउ पडिमं खिविय सयं | घडियसंपुडए ।। २८ ॥ पत्तो जलहिमि तया पोयस्सुप्पायओ भमंतस्स । छम्मासा वोलीणा तो सो संहरिय उप्पायं ॥ २९ ॥ ॥४४४|| For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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