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श्रीदे || उब्विग्गो ।८॥ ता सामिसाल जो इह सुयावराहमि हुज मह दंडो। तं कुणह आह राया सिट्ठि! तुम होसु वीसत्थो ॥९॥ इय || श्रीश्रेष्ठिचैत्यश्री
भणिय जाव सिद्धि विसज्जए ताव तत्थ सोमोऽवि । पत्तो केणऽवि अयं सुट्टो मुट्ठोत्ति जंपन्तो॥१०॥रायाऽऽह मा विसीयसु गयं कथा धर्मसंघा-VI
धणं कहसु सोम ! सो भणइ । देव! पणवीससहसा कणगस्स गिहा ममज्ज गयं ॥११॥ नियसिरिघराउ राया तत्तियमित्तं दवाचारविधी
विउं दव्वं । जहउचियं सकारिय विसन्जिय तयं सठाणमि ।। १२ ॥ तेडाविय सिरिगुत्तं रोसारुणलोयणो पयंपेइ । रे सोमसिटि॥४०२॥
दव्वं अवहरियं झत्ति अप्पेठ ॥ १३ ॥ सो आह देव! एवंविहमवदृतंपि कोऽवि किं भणइ ?। किं अम्ह कुले केणवि अकजमेवं विहियपुव्वं ॥१४॥ नत्थि खलु दुजणाणं किंपि अवत्तव्वयंति मन्नेमि । अहवा सामिय! इत्तो जलंपि पाहामि सुद्धोऽहं ॥१५॥ पञ्चक्खनिण्हवुप्पन्नमच्चुणा तो निवेण कारणिया । पुरिसा एवं वुत्ता भो भो एयं दुरायारं ॥ १६ ॥ फालेण विहियसुद्धिं लहु मह अप्पेह तेऽवि एवंति । वुत्तुं उच्छालंती दिव्वट्ठाणस्सुवरि एयं ॥ १७ ॥ सो आह गिहिहमहं फालं को पुण सिरंमि इह होही। कोवकरालो राया जंपइ अयं सिरे होहं ॥१८॥ वुड्डा तत्थ नयकहा जत्थ सयं नरवरो सिरे ठाइ । इय भणिरं निति तयं कार णिया दिब्बठाणंमि ॥१९॥ फालं फुलिंगजाले मुयमाणं सबलोयपचक्खं । काउं सचेलण्हाणं कामे सावित्तु सो लेइ ॥२०॥ पुबपढियग्गिथंभणमंतस्सरणा अदडगत्तोवि | सत्तमए मंडलए फालं लहु मुयइ सिरिगुत्तो ॥२१॥ सुद्धो सुद्धत्ति तओ पडिया ताला निउत्तपुरिसेहि। से कंठे पक्खित्ता माला सियसुरहिकुसुमाणं ।।२२।। इय वुत्तो रन्नो निवेइओ से धसकिओ चित्ते । अविभाविय सि(म)त्थग्गहविहियपइबो विचिंतेइ ॥२३॥ दिव्वग्गहणेण सुद्धंमि तकरे सिरयसंठिओ पुरिसो। चोरोविव दंडिजइ निवेण नयधम्मकलिएण ॥२४॥ सयमेव सिरयपक्खं गहिय अहं सयललोयपञ्चक्खं । जइ अप्पमप्पणच्चिय नेव निगिण्हामि चोरव्य ॥२५॥ ॥४०२॥
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