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श्रीदे. चेत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥४०३॥
श्रीश्रेष्ठिकथा
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|| ता सच्चवाइणो राइणुत्ति दिजइ इमीइ वाणीए। सलिलंजली तह जए आससिमरं भमउ अजसो ॥ २६ ॥ पयलं जाउ नयकहा
कलुसउ कलिकालकलिलमखिलजणं । उत्तमजहन्नमज्झिममग्गोवि समत्तणं लहउ ॥२७॥ ता किंबहुणा मह जीविएण दीहेण नयविहीणं ?। वरमिहि चिय मरणं पच्छावि अवस्समरियव्वे ||२८|| इय निच्छिऊण राया मंतीण कहेइ नियमभिप्पायं । तेऽविहु विसायविहुरा एवं विनविउमाढत्ता ॥ २९ ॥ देव! न जुञ्जइ कहमवि चिंतिउमवि अप्पणो अहियभावो। जं अप्पणाऽमुणा खलु तायव्या मेइणी सयला ॥ ३० ॥ किंच-अवितहवयणो सिट्टी सुद्धो दिव्वेण उयह सिद्विसुओ । ता अत्थि जलणथंभिणी कावि सत्ती धुवमिमस्स ॥३१|दिवस्स देवयाओ उपसंनिहियाओ कयाइ नहु हुजा । इत्तुच्चिय भणियमिणं दिवस्स गई अहो दिया॥३२॥ ता सामि ! इमस्स पुणो विसिट्ठतरमंतवाइपच्चक्खं । दिव्वं दाउं जुज्जइ इय जाव भणंति मंतिवरा ॥३३।। ता विनवेइ वित्ती पहु! दसणऊसुओ बहिं अस्थि । सिद्धबहुमंततंतो जोगिवरो कुसलसिद्धित्ति ॥६४॥ रनोऽणुनाए वेत्तिणा तहिं आणियस्स तस्स | लहुं । विहिओचियस्स कहिओ मंतीहि फालवुत्तो ॥३५॥ सो चिंतिय भणइ तयं फालं गाहेह मज्झ पच्चक्खं । मुणिहह सच्चम
सच्चपि बेंति मंतीवि एवंति ॥ ३६॥ तेडाविय मंतीहिं सिरिगुत्तो पभणिओ बिइयदिवसे । जइ रे सुद्धो सचं पुणरवि गिण्हेसु तो | फालं ॥३७।। गहिउं इमो पयट्टो अह चउदिसि तस्स अक्खए खिवइ । परविजाविच्छेयगमंतेणऽभिमंतिउं जोगी ।।३८|| तम्माहप्पेण इमस्स विगलिए सबहावि मंतबले । फालफुलिंगुब्ब जलणजालिया पाणिणो दड़ा ।।३९।। खुड्डो खुड्डोत्ति जणेण सहरिसं पाडिया य से ताला | भुत्तुत्तरसुवणीओ मंतीहिं निवस्स सिद्विसुओ॥४०॥ रन्ना भणिओ रे रे जहट्टियं कहसु पुव्ववुत्ततं । अन्नह | मरेसि नूणं भयभीओ भणइ तो एसो ॥४१॥ सामिय!.पुचाहियजलणथंभमंतेण दिव्वथंभो मे। आसि कओ संपइ पुण कत्तो
Asans-AHINIA HINDIMECHANDANImmyaINA
॥४०
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