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गान्धारश्रावक:
श्रीदे चैत्यश्री धर्म०संघाचारविधौ ॥१२०॥
|पडिमा, तत्थ ठिओस गिलाणो जाओ पडिजग्गिओ य कुाए । अट्ठसय गुलियाणं तीए दाउंस पच्चइओ ॥ २९ ॥ अह | एगगुलियभक्रवणपभावओ सा सुवनभा जाया । सा तप्पमिइ जणे मुवनियगुलियत्ति सुविस्वाया ॥३०॥ भक्खित्तु बीयगुलियं
चिंतइ सा मे पिउब एस निवो । सेसा गोहसमा तो मह भत्ता हवउ पोओ ॥३१।। सो देवयाणुभावा तीइऽणुरनो विसज्जए | दयं । सा भणइ दंसमु निवं पजोयस्साह सो गंतुं ॥४५|| नलगिरिमारुहिय इमो निसि पत्तो तत्थ तीद अमिइओ। जियपडिमं सह गिण्हसु एमि जहा अबहा नेव ॥४६॥ अह गंतु सो सनयरं पडिरूवं कारिउं तहिं पत्तो । तं मुतुं जियपडिम दार्सि गहिउं गो सपुरि ।। ४७ ॥ गोसे सकरी सोउं नट्ठमए चेडियं अवहडं च । कुविओ उदायणनिवो जा जोयावेइ जियपडिम ॥४८॥ तो तं मिलाणमल्लं दटुं दममउडबद्धनिवसहिओ। पजोयनिवस्सुवरि चलिओ काले निदाघमि ॥ ४९ ॥ पत्तो मरुमि सिने मिसं तिसापीडिए सरह राया । झत्ति पभावइदेवं स विउबइ पुक्खरतिगं तो ।। ५०॥ तर्हि तहिं पाउं पाउं सलिलं सिने सुरो गो सपयं । राया उदायणोऽविहु उज्जेणिपुरं कमा पत्तो ।। ५१।। तत्थ उदायणरन्नो अवंतिनाहस्स दूयबयणेण । अचिरा परुप्परेणं रहसंगरसंगरो जाओ ॥५२॥ तयणु धणुद्धरपक्रो रहमारुहि उदायणो पत्तो । गुणटंकारमुदारं कुणमाणो समरभूमीए | ॥५३॥ नाउ रहाजेयमुदायणं निवं नलगिरि चडिय पत्तो। रणभुवि पजोओ पुण बलवंते का नणु पइन्ना ॥५४॥नलगिरि | गयमारूढं तं दट्ठमुदायणो भणइ रुट्ठो । पाविट्ठ भट्ठसंधो सि तहवि पहो सिरे घिट्ट ! ॥५५॥ इय भणिय मंडलीए रएका
स रहं निवो भमाडंतो । निसियसरेहिं विंधइ वीसुं करिणो पयतलाई ॥५६॥ तो लहु हत्थीपडिओ धरिऊण उदायणेणंः पजोओ। | मम दासीवइदासोत्तियंकिओ कोववसगेणं॥५७।। गंतं तउ विदिसाए अस्थिय देवाहिदेवपडिमं जा | उप्पाड नरनाहो ता भनाइ
MAHalliHPANTHIN
aithilitaMUS
TAMAMITINE
|॥१२०॥
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