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श्रीदे० चैत्म० श्रीधर्म० संघा चारविधौ
॥ १९९॥
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कपि सो खणियखाणिखोणीओ। अजद अवजवजाईं बजपमुहाई रयणाई || २८ ॥ ताई जरदंडिखंडे बंघिय नियगामहुत्तमह चलिओ । कत्थवि संतो सुतो य सत्थरे जात्र पयलाइ ||२९|| ताव सहसति तं दंडिखंडमादाय मक्कडो नट्ठो । सीहस्स गठिबद्धा पाणष्ठ गयाई रयणाई ॥३०॥ उदंडदंडखंडं उप्पाडिय घाविओ स पुट्ठीए । रे उक्कडमक्कड कत्थ जासि मारेमि इय मणिरो ||३१|| अबरावर तरुत्ररसिहर सेणिसंचरणओ लहु पर्वगो । कत्थवि नित्रडियगंडी नयणाण अगोयरं पत्तो ॥ ३२ ॥ हा हा हओ म्हि रे दिव ! दारुणो दुअणस्स व तुद्देस्रो । निक्कारणओ निक्करुण कोऽवि मइ वइरवावारो ॥ ३३ ॥ रयणुच्चरण इमिणा पूरितं किर मणोरहे नियए । कह कविरूवेण अरे मुट्ठो थट्ठो य दृट्ठ तए || ३४ ॥ हिययं असरिसहरिसेण विलसह इयविधी उ विहडे । विलसद सयलकलाहिं कलानिही गिलह अहह तमो ॥ ३५ ॥ इय तो दर्द कुओऽवि आगम्म जोगिणा एसो । कालुणिएण व बुचो बन्छ ! तुमं कीस दीणोसि १ ||३६|| तेणवि नियबुचंतो बुतो तो जोगिणा इमो भणिओ । लहु एहि मए सद्धिं रससिद्धिं जेण तुह देमि ||३७|| तो तेण समं चलिओ सीहो पत्तो कमा विचरमिक्कं । रसकूत्रीइ पविट्ठो मंत्रीए गहिय रसतुंबं ॥ ३८ ॥ रसमरियतुंबओ सो पक्षो रज्जूह वित्ररदारंमि । चिंतेह तात्र जोगी लेमि रसं मरउ एस इ ||३९|| अह मणइ इमो अप्पसु रसमुचारेमि जेण तं पच्छा | अन्नह रसस्स तुम्भ व उभयस्स व होहिइ पमाओ ||४०|| निश्चयबलउचिन्नो सरसो ध्रुवणं वणं व मन्नतो। जा जाइ जोइणा सह ता पुण चिंवर इमो पावो ॥४१॥ मारेमि इमं उररीकरेमि रसमेयमसरिसपदावं । मारितो जर पुण मारइ तो किं रसो काही १ ॥ ४२ ॥ बहुसामत्थेऽवि परंमि अतुलिए को बुद्दो चडइ समुहो ? । विवरं विसहररश्यिंपि जणेइ हिययस्स आखंकं ॥४३॥ ता अइसयवीससिअं काउमिमं वंचिति चिंतंतो। भणइ इमो जड़ नज्जवि इमिणावि रसेण तुद्द तोसो ||४४||
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प्रणामे
सुरेन्द्रदत्त
कथा
॥ १९९॥