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अग्रपूजायां हरिकूटसंबंध:
श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ।। ८३॥
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विजणपएसे कत्थवि ठिओ अहोराइ पडिमं ।। २४३ ।। उच्चट्टिय धूमाओ अयगरजीवो इओ य चक्कपुरे। दारुणसोयरियसुओ अइकट्ठो नाम उप्पनो ॥ २४४ ।। हिंडंतेणं तेणं इओ तो पिच्छिउंस रायरिसी। खग्गेण अखंडतवो खंडाखंडीकओ मरिउं ॥२४५॥ अविणदृधम्मझाणो देवो सबसिद्धसुविमाणे । जाओ अइकिट्ठो पुण अपइट्टाणे दवामिहओ ॥ २४६ ॥ कारइ निवो अमारिं अह तित्थुमइकए तह सरजे । जिणरहजत्ताइ तहिं चउहाऽऽहारऽग्गपूयत्ति ॥२४७|| इह होइ असणपूया वरखजगमोयगाइभक्खेहिं । दुद्धदहियाईभायणेहिं तह ओयणाईहिं ॥२४८॥ जलपूया जलभायणधारादाणाइ खाइमञ्चणया। फलदाणादिक्खुस-| रिसवाइणा मंगलाइविही॥२४९।। साइमपूयाइ पुणो नेयं पूगफलपत्तगुलपमुहं । पंचंगुलितललिहणाइ पुप्फप्पगराइ णेताई । २५०।। इय पालियगिहिधम्मा रयणाउहराय रयणमाला उ । दिन्नबहुजीवअभया विहियाखिलभत्तपरिचाया॥२५१।। अच्चुयकप्पे पुप्फगनलिणगुम्मेसु वरविमाणेसु । बावीससागराऊ जाया देवा महिड्डीया ॥२५२॥ अह धायइसंडदीवे अवरविदेहे पुरच्छिमद्धस्स । सीयाओ दाहिणओ अत्थि सुनलिणो नलिणविजओ।।२५३।। नयरीऍ असोगाए तत्थ अहेसी अरिंजयनिवस्त । सुब्बयजिणदत्ताओ भजाओ सीलसजाओ ॥२५४॥ तासि सुया संजाया वीयभय-विभीसणत्ति बलविण्हू । ते अच्चुयकप्पचुया रयणाउहरयणमालजिया ॥२५५॥ ते साहियविजयद्धा विसुद्धसद्धा सया सुहसमिद्धा । विहरति जितविरुद्धा अन्नुन्नसिणेहपडिबद्धा ॥२५६।। अयराउ नारओ सक्कराइ जाओ विभीसणो मरिउं । वीयभओ पुण सुविहियमुणिपासे गिण्हए दिक्खं ।। २५७ ॥ काउं पाओवगमणं लंतयकप्पंमि | सुरवरो जाओ। आइचाभविमाणे समहियइकारअपराउ॥२५८॥ वंसाउ पुणुबहिय विभीसणो जंबुदीवएरवए । सिरिवम्मसुओ जाओ सिरिदामनिवो अउज्झाए ।।२५९॥ पत्तो विहारजतं वीयभयमुरेण पुन्बनेहेण ! पडिबोहिओ अणंतइजिणपासे गहिय
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