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सुमवसरणं
श्रीदे० । चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥१०६॥
यफालियधम्मचकचऊ ।।११।। झयछत्तमयरमंगलपंचालीदामवेइवरकलसे । पइदारं मणितोरणतिय धूवघडी कुणंति वणा ॥१२॥ जोयणसहस्सदंडा चउज्झया धम्ममाणगयसीहा। ककुभाइजुआ सवं माणमिणं जिण(निय प्र०)निअकरेण ॥ १३ ॥ पविसिय ।। पुन्वाइ पहू पयाहिणं पुबआसणनिविट्ठो । पयपीढठविअपाओ पणमियतित्थो कहइ धम्मं ॥ १४ ॥ मुणि १ वेमाणिणि २ समणी ३ सभवण १ जोइ २ वण ३ देवि ३ देवतियं ३। कप्पमुर १ नरित्थि ३ तियं ठंतिग्गेयाइविदिसासु ॥ १५ ॥ चउदेवि समणि उडिया ५ निविट्ठा नरित्थि सुरसमणा ७ । इय पण सग परिस सुगंति देसणं पढमवप्पंतो ॥ १६ ॥ इय आवस्सयवुत्तीवुत्तं चुन्नीइ पुण मुणि निविट्ठा । वेमाणिणि समणी दो उद्धा सेसा ठिआ उ नव ।।१७।। बीयंतो तिरि इसाणी | देवच्छंदोय जाण तइयंतो। तह चउरंसे दुदुवावि कोणेसु उ वहि इक्विका ।।१८॥ पीयसियरत्तसामा सुरवणजोइभवणा रयणवप्पे ।। धणुदंडपासगयहत्थसोमजमवरुणधणदक्खा ॥ १९ ॥ जयविजयाजियअवराजियत्ति सियअरुणपीयनीलाभा । बीए देवीजुअला अभयंकुसपासमगरकरा ।।२०।। तह य बहि सुरा तुंबरु१ खग्ग()गि २ कवाल३ जडमउडधरा ४। पुवाइदारवाला तुंबरुदेवो य पडिहारो ॥२१॥ सामन्नसमोसरणे एस विही एइ जइ महिडिसुरो । सबमिणं एगोऽविहु स कुणइ भयणेयरसुरेसुं ॥२२॥ पुत्वमजायं जत्थ उ जत्थेइ सुरो महिडिमघवाई। तत्थोसरणं नियमा सययं पुण पाडिहेराई ॥२३।। दुत्थियसमत्तअत्थियजणपत्थियअत्थसत्थसुसमत्थो । इत्थं थुओ लहु जणं तित्थयरो कुणउ सपयत्थं ॥२४॥ समवसरणस्तवनं समाप्तं । पयडियसमत्तभावो गाहा, सबओ'त्ति चैत्यवृक्षस्थानात् सर्वदिशं,उक्तं च-मध्ये मणिपीठिका विष्कंभे धणु २००, अर्द्ध धनु१००,उच्चत्वे तीर्थकरदेहमाना मणिपीठिका, प्रथमे प्राकारांतरे गाउ१ धनु ६००, प्राकारविष्कंभे धनु ३३ हस्त १ अंगुल ८, उच्चत्वे धनु ५००, प्रथम
॥१०६॥
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