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श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचार
विधौ ॥४२॥
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इमा । अन्नाणवि निस्सिहियाभंगाई कुणंति विकहपरा ॥९२।। जओ-"जो होइ निसिद्धप्पा निसीहिया तस्स भावओ होइ। अनि-|| नषेधिक्यां सिद्धस्स निसीहिय केवलमित्तं भवइ सद्दो ॥९३।। मिहो कहाउ सबाओ, जो बजेइ जिणालए । तस्स निसीहिया होइ, ईई केवलि भुवनमल्लः भासियं ।।९४॥" इअ अट्टवसट्टाउ परुप्परं दोवि कलहमाणाओ। विज्जूए दड्ढाओ मरिउं जायाउ वग्वीओ ॥९५।। पुबन्भासा । अन्नुनदंसणे जायतिवरोसाओ। जुज्झिय मरिउं तत्तो पत्ताओ तइयनरयमि ॥९६।। तत्तो उवहिय गयउरंमि पुश्वभवविहियसुकयवसा । भाउजायाजीवो जाया सिरिसूरनिवजाया ॥१७॥ तीसे गन्भे धूयत्ताइ नणंदाजिओ उ उप्पो । अरई मणसंता उल्वेयं | जणइ अइगरुयं । ९८॥ विहिएसुवि तप्पाडणहेउसएमुं न जाव सा पडिया। तो जाया पयडेउं मयत्ति दासीइ छड्डविया ।।९९॥ तद्दिवसपसूयाए तीए पुण अप्पिया सध्याए । तत्थ य पालिजंति सा बाला वढिया तत्तो ॥१०॥ कीलंती डिंभेहिं अहऽनया जोगिएण भोलविआ। अइरुद्दमंतसाहणहेउं नीया मसाणे सा ॥१०१।।जा खिविही सो जलणे ता तुमए मोइउं इहाणीया । इय नाउं भो अप्पा कसाइअबो न थेवंपि।।१०२॥ भणियं च-'अण थोवं वण थोवं अग्गी थोवं कसाय थोवं च । नहु मे वीससिअखंथेपि हुतं | बहुं होइ ॥१०३।। दासत्तं देइ अणं अइरा मरणं वणो विसप्पंतो। सबस्सदाहमग्गी दिति कसाया भवमणंतं ॥१०॥" सा भणइ | सरिय जाई भयवं ! सबंपि मेऽणुभूयमिणं । ता इण्हि कुण करुणं दुहावि जह होमि निस्संगा ॥१०५|| भणइ मुणी गिहिधम्मस्स इण्हि उचिया तुमंजओ अस्थि । पुवकयदेवपूयाइसुकयसंभूय भोगफलं॥१०६॥जओ-"देवचणेण रज्जंभोगा दाणेण रूवमभएणं। सोहग्गं सीलेणं तवेण मणवंछिया सिद्धी॥१०७॥"सा भणइ तुम्ह सवं पञ्चक्खं नाह! नवरि मज्झ कहं । अविरयसुराण | मज्झे ठियाइ निवहेड गिहिधम्मो ॥१०८॥ तो केवलिणा भणियं भद्दे ! कालिंजराइ अडवीए । सिरिरिसहनाहभवणंमि तुझ पूर्य ||४२।।
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