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Acharya Shri Kabl
suri Gyanmandit
बीदे
बन्दनामतान्तराणि
चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधी ॥१९॥
MAHI
अन्ने बिति इगेणं सक्कथएणं जहनवंदणया। तहुगतिगेण मज्झा उकोसा चउहिं पंचहिँ वा ॥ २४ ॥
हत्थसयाओ मो इरियावहियाअमावओ दुनि । एवं उक्कोसाए चउरो सकत्थया नेया ॥१॥ (१७०) मणिऊण नमुकारे || | सकत्थयदंडयं अपडिऊणं । इरियं पडिकमते दो चउरो वावि पणिवाया ॥२।। (१७१) इरियाए पुर्व वा पणिहाणंते व सकस्थय
भणणे। दुगुणचिइवंदणाते व हुंति सक्कत्थया तिनि॥३॥ इगवारवंदणे पुत्र पच्छा सक्कथएहिं ते चउरो। दुगुणिअवंदणाए पुती | पच्छा व सक्कथए ॥४॥ सक्कत्थओ अ इरिया दुगुणिअचिइवंदणाइ तह तिनि । धुसपणिहाण सक्कत्थओ य इय पंच सक्कथया ॥५।पादकिरियाणुसारा भणिआ चिइवंदणा इमा नवहा । तिविहाहिगारिमावा तिहावि सा इय भवे नवहा ।। ६ ॥ उक्तं चअहवावि अपुणबंधगविरयाविरयाण मिनभावाणं । तिहाहिगारीण पिहो तिविहावि भवे तओ नवहा ॥७॥ मिच्छत्तुक्कोसठिई न बंधिही अपुणबंधगो जेण । समयकुसलेहि सो पुण इमेहि लिंगेहिं नायबो ॥८॥ पावं न तिवभावा कुणइ न बहुं मबई भवं घोरं। उचियद्विहं च सेवइ सबथवि अपुणवंधोति ॥९॥ तत्तत्थे रोयंतो सम्मदिट्ठी असग्गहच्चाया। देसेअरविरइजुओ चारिती तुलियसामत्थो ॥१०॥ सुस्यूस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए। वेयावचे नियमो सम्मदिद्विस्स लिंगाई ॥११॥ मग्गणुसारी सड्ढो | पनवणिजो किआवरो चेव । गुणरागी सक्कारंभसंगओ तह य चारित्ती॥१२॥ तथा-वंदणकहासु पीई असवण निन्दाइ निंदगऽणुकंपा। मणसो निचलनासो जिन्नासा तीऍ परमा य ॥१३॥ गुरुविणओ तह कालाविक्खा उचिआसणं च सइ कालं । उचियस्सरो य पाढे उवउचो तहय पादमि ॥१४॥ लोगपियत्तमनिंदियचिट्ठा वसणंमि धीरया तय । सत्तीए तह चाओ य लद्धलक्खणत्तणं | चेव ॥१५॥ एएहि लिंगेहिं नाऊण हिगारिणं तओ सम्मं । चिइवंदणपाटाइवि दायत्वं होइ विहिणा उ ॥१६॥ भणि च-अत्यो
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अमेEिपिहोतिहावि
॥१९४||