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Acharya Shri Ka
s ur Gyanmandit
श्रीदे चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२८॥
चोरे भणइ जह धणो रायगिहे अत्थि भूरिधणो । ३॥ धृया य सुंसुमा से सा मज्झ धणं तुहंति वुत्तु गओ। तेहिं समं रायगिहे चिलाति| रायगिहे सयललच्छीणं ॥४॥ ओसोवणिं पउंजिय जा पविसइ धणगिहे धणो ताव । पणसुअसहिओ नट्ठो मुट्ठो से तकरहिं घरो ।।५।।
पुत्रकथा तह करगइ निचिसो नित्तिसो गहियकमलनिचिसो। तं सुंसुमं चिलाइव लाउ गओ भणिय इय सई॥६॥जो अन्नमाउदुद्धं पाउमणो एउ सो इहं सुहडो। सधणं हरिय धणसुअं एसो गच्छइ चिलाइसुओ ॥७॥ अह आणेह सुयं मे हरिअधणं वोत्ति भणिय पुररक्खे । पुत्तेहिं तलवरेहि य सह तप्पुट्ठीइ जाइ धणो |८|इय पीयं इय वुत्थं इय भुत्तं सुत्तमित्ति मणिरेहिं । पइएहिं लहुनीया चोरासनं तलवरा से ॥९।। अह हण अह हण अह गिण्ह २ सोउं तु तग्गिरं चोरा । मिल्हिा धणं पलाणा सबस्सवि वल्लहं जी॥१०॥ तं गहिय धणं विउलं बलिआ आरक्खगा तओ झत्ति । जे होइ सिद्धकजो सचोऽविहु अन्नहामइओ॥११॥ तरुणो लया थलं जलमबंपिहु सुसुमामयं पसं। पीयकणउच्च कणयं चलिओ पुरओ धणो ससुओ॥१२॥ अह आसनंमि धणे मा हवउ इमा इमस्सवित्ति बुद्धीए। छित्तु सिरं से गहिअ गओ निअंतो चिलाइसुओ ॥१३॥ तो सुसुमाकबंधं दठ्ठ धणो विलवए बहुं ससुओ।नयणंजलीहिं दितो तीइ जलं वंऽसुपूरेण ॥१४॥ हा सुअणवच्छले ! वच्छि! उच्छवं मोइओ सुवच्छल्लो। काहं नियवच्छीए इअ वंछा | आसि मह वच्छे ! ।।१५॥ हा जइ न दुठु बुद्धिं अकरिस्सं ता कयाइ बहुधणओ। निअपुत्तिममोइस्सं ता कह जायत्ति अमई मे | ॥१६॥ इअ सोगसंकुकीलिअहिययो सो झूरिउं पडिनियत्तो। पत्तोरणं जंजिणगिहं व बहुसावयाइण्णं ॥१७॥ चिंतइ सव्वस्सखओ कह? कह व मया सुया य पाणपिआ। कह आवया व ससुअस्स मह हा हा विलसि विहिणो ॥१८॥ सो असमत्थुण्हतण्हामज्झण्हिअतावताविओ पत्तो। संतविअपणग्गितवो तो रायगिहं व रायगिह ॥ १९ ॥ अह तत्थ समोसरि वीरजिणं नमिय
AL॥२८॥
PAHARI
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