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________________ श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥४४७॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥५२॥ बोहइ बहुदा स निवं बुज्झइ न उसो तओ सुरो काउं । तावसरूवं रन्नो सभागयस्सऽप्पर फलाई ॥५३॥ वनरसगंधफासुकिट्ठाई फलाई एरिसाई कहिं । अत्थित्ति १ निवेणुत्ते स भणइ बहि तात्रसावसहे ||२४|| अह तप्फलगिद्धीए राया तेण सह जाइ जा बाहिं । ता नियइ तमुजणं आइनं तावससएहिं ॥। ५५|| तेहिं अरेऽरे गिण्हह गिण्हह एयंति जंपिरेहिं निवो । कुट्टितो नट्टो पिच्छइ पुरओ जइणसमणे ॥ ५६ ॥ तेसिं सरणमुवगओ मुणीहिं से वित्थरेण परिकहिए । जिणधम्मे पडिबुद्धो जाओ राया महामद्धो ||५७|| अद्द नियइ निवो अप्पं सहाणे दंसियऽप्पयं अमरो । कज्जेसु मं सरिञ्जत्ति वुत्तुं पत्तो नियं कप्पं ॥ ५८॥ इयो य-गंधार| जणवए सावगो पव्वइउकामो सव्वतित्थयराणं जंमणनिक्खमण केवलुप्पायनिव्वाणभूमीउ दठ्ठे पडिनिय तो पव्वयामिति, ताहे सुर्यवेयड़गिरिगुहाए रिसहाइयाण सव्यतित्थयराणं सव्वरयणचिंचइयाओ कणगपडिमाओ, साहुसगासे सुणित्ता ताव दच्छामिति तत्थ गओ, तथ्य देवयाराहणं करिता विहाडिया पडिमाओ, तत्थ सो सावगो थयथुईहिं धुणंतो अहोरत्तं निवसिओ, तस्स निम्मलरयणेसु न मणागमवि लोभो जाओ, देवया चिंतेइ - अहो माणुसमलुद्धति, तुट्ठा देवया, बूहि वरं भणती उबट्ठिया, तओ सावगेण लवियं-नियतोऽहं माणुस्सरमुं कामभोगेनुं, किं कज्जंति, अमोहं देवयादरिसणंति भणित्ता देवया असयं गुलियाणं जहाचिंतियमणोरहाणं पणामेइ, ताओ य गहिया सावगेण, तओ निग्गओ, मुयं च णेण-वीयभयनयरीए सव्वालंकारविभूसिया देवावयारिया पडिमा तं दच्छामित्ति तत्थ गओ, वंदिया पडिमा, तत्थ ठिओ स गिलाणो जाओ पडिजग्गिओ य कुञ्जाए। अट्ठसयं गुलियाणं पव्वइओ तीइ सो दाउं ||५९ ॥ अह एगगुलियभक्खणपभावओ सा सुवन्नवन्नाभा । जाया तप्पभिइ जणे सुवन्नगुलियति विक्खाया ॥६०॥ भक्खितु बीयगुलियं चिंतइ सा मे पिउन्न एस निवो । सेसा गोहसमा तो मह भत्ता हवउ पज्जो ओ ।। ६१ । सो देवयाणुभावा तीइऽणुरचो For Private And Personal Acharya Shri Karsuri Gyanmandir प्रभावतीकथा ॥४४७॥
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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