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________________ Shri Mal Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाअरविधौ न आहिणो वाहिणो नेव ॥६॥ किंतु अणंतचउकयकलिओ जीवो निरंजणो निचो। उज्जोयंतो तिजयं चिट्ठइ रयणप्पइबुन्न देशना।। ६६ ।। पत्र ११४ संग्रहा यावन्न जरा न रुजा न विघ्नसंघो न चेन्द्रिये हानिः । तावदलममलमतिना स्वहितकृतावुद्यमः कार्यः ॥८४॥ पत्र १५८ __ इह निव्वुइपरमंगाणि जंतुणो दुल्लहाणि चत्तारि। मणुयत्तं धम्मसुई सद्धाणं संजमे विरियं ॥४९॥ चुलसीइलक्खजोणीमु बहुकुलकोडीसु भमिय कहवि जिओ । इह लहइ माणुसत्तं सुदेससुकुलाइसुपवित्तं ॥५०॥ तत्थवि कुतित्थबहुले लोए दुलहा विसु धम्मसुई । जीइ अहिंसगधम्म पडिवज्जिय तरइ भवजलहिं ॥५१॥ धम्मेसुवि दुल्लहा तत्तई मिच्छत्तसेवए लोए । जं नेयाउयमग्गा बहवे भस्संति मूढमई ॥ ५२ ॥ सदहणेऽविहु धम्मस्स फासणा दुल्लहा उ कारण । कामगुणमुच्छिया जं विरमंति जिया न पावाओ ॥५३॥ जो उ मणुयत्तपत्तो सुद्धं धम्मं सुणितु सद्दहिउं । जहविहिणा उ अणुहइ सो इह लहु धुगइ कम्मरयं ॥५४॥ ता धम्माणुट्टाणे करेह जत्तं सया विहिपहाणे । धारेह सुद्धभावं भविआ! बजेह वितहभावं ॥ ५५ ॥ जं विहियमणुट्ठाणे वितहत्तं कुणइदंसणं समलं । समले तंमि तवनियमवयगुणा हुंति न बहुफला ॥५६॥ धम्मगयं वितहत्तं थोपि विसं व हणइ सुहनिचयं। वड्डेइ दोसजालं जणेइ बहुऽणत्थवित्थारं ॥२७॥ धर्मानुष्ठानवैतथ्यात् , प्रत्यपायो महान् भवेत् । रौद्रदुःखौषजननो,दुष्प्रयुक्तादि वौषधात् ॥ ५८ ॥ पत्र-१६३ DI संसारो दुहहेऊ दुक्खफलो दुसहदुक्खरूवो य । नेहनियलेहिं बद्धा न चयंति तहावि तं जीवा ।। ७०।। जह न तरइ आरु हिउं पंके खुत्तो करी थलं कहवि । तह नेहपंकखुत्तो जीवो नारुहइ धम्मथलं ॥७२॥ छिजं सोसं मलणं बंधं नीपीलणं च लोय-10॥५१॥ For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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