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श्रीदे
रनसारकथा
चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधी ॥१८४॥
NIBRARIANS
attisht A MEETINENTATES PRIMALAPHARNA
इच्चाई जं च वण्णिा तिविहा । नवभेयाणमिमेसिं नेय उवलक्खणं तं तु ॥ २ ॥ एसा नवप्पयारा आइण्णा वंदणा जिणमयंमि। कालोचियकारीणं अनग्गहाणं सुहा सव्वा ॥३।। (१६३)"रत्नसारनरेन्द्रवत्। बहुभेया पुण एसा भणियत्ति बहुस्सुएहिं पुरि| सेहिं । संपुनमचायतो मा कोइ चइज सर्वपि ॥१॥ भणियं च-वित्तिकिरियाऽविरोहो अबवायनिबंधणं गिहत्थाणं। किरियंतरकालाविक्खयाइ भावो सुसाहूणं ॥१॥ अहवा चिइवंदणया निचा इअरत्ति होइ दुविदा उ । निचा उ उभयसंझमि इयरा चेइअगिहाईसु ॥२॥ निचा संपुनच्चिय इयरा जहसत्तिओ य कायवा । तविप्लयमिमं सुत्तं मुणंति गीआउ परमत्थं ॥३॥ उप्पन्नसंसया जे सम्म पुच्छंति नेव गीयत्थे । चुकंति सुद्धमग्गा ते पल्लवगाहिपंडिच्चा॥४॥ किंच-गीयत्था विहिरसिआ संविग्गतमा य मरिणो पुरिसा । कह ते सुत्तविरुद्धं सामायारं परूवंति ॥ ५॥ पूर्वसूचितरत्नसारनरेन्द्रकथा त्वियं-इह अस्थि हथिणपुरं पुरं पुरंदरपुरं व बहुविबुहं । तत्थ निवो सिरिसेणो सिरिवइनामा पिया तस्स ॥१॥ वाण सुओ जयविस्सुअगुणरयणो रयणसार इय कुमरो। जिणपवयणकुसलमई सुमई नामेण से मित्तो ॥२॥ तत्थागया कयावि हु सिरिसंगमसूरिणो पणमिते । पत्ता निवाइलोआ गुरुणोऽवि कहंति इय धम्मं ॥३॥ "इह जलनिहिभुअचिंतारयणं व सुदुल्लहं मणुअजम्मं । रोरस्स निहाणंपिव तत्थवि सम्मत्तमइदुलहं ॥ ४॥ कहकहवि तंपि लहिउं तस्सुद्धिकए करेह पइदिवसं । मज्झजहन्नुकोसं चिइवंदणयं जहासमयं ॥ ५॥ तत्थ-एगनमुकारेणं बहुविहसकथएण व जहन्ना। इरियनमुक्काराईपणिहाणंतेण बिइगेणं ॥ ६ ॥ सचिब इगचूलथुई उज्जोअगरंति जाब मज्झिमया। पणदंडथुइचउक्कगपणिहाण विणति जं भणियं ॥७॥ 'निस्सकडमनिस्सकडे त्यादि । सक्कथयचिइवंदणथयनामथयाइ तिनि थुइदंडा । एवं पणदंडा चउथुइजुया अंतसक्कथया ॥ ८॥ जा थयपणिहाणंता उक्कोसा दुगुणपंचदंडा वा
॥१८॥
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