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नमिचिनमिवृत्तं
श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥९२॥
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उ विभवंति इमं । सबजगजीवहियं भयवं! तित्थं पवत्तेहि ।।१७। इय विश्वविउं सामि नमिऊण य ते सुरा गया सग्गं। जिणनमणाओ सग्गं जंति जिया अहव किं चुजं? ॥१८॥ इंदनियत्तकुबेरप्पेरियजंभगसुरेहिं जयपहुणो । मणिरयणकणयपमुहो उवणीओ विवि विहवभरो ||१९| सिंघाडगतिगचञ्चरचउक्कचउमुहमहापहपहेसु । तह गोयररत्थाइसु वरवरियाघोसणेण तओ ॥२०॥ मूरोदयाउ आरम्भ पायरामाउ जाव जयनाहो। वियरेइ कोडिमेगं कणगस तहऽट्टलक्खा उ ।।२१।। कोडीसय तिग कोडी अट्ठासीई असीइलक्खा उ । जगवच्चलेण संवचरेण दिना तिजयपहुणा ।। २२ ।। एवं कंचणधाराहि तचधाराधरोवित्र धराए । पदमो धराधिराया धरिसेइ दरिद्दसंतावं ॥२३।। अह वरिसियदाणते सहमा चलियासणा सुरवरिंदा। सबिडीइ सपरिसा सम्बेऽवि समागया इत्थ ॥२४॥ तद्दिक्खमिसेयं सायकुंभकुंभेहिं अंभभरिएहिं । पहुणो कुणंति अह पह आरुहइ सुदंसणं सिवियं ।२६।। पुषि उक्खित्ता माणुसेहिं साहटुंगेमकूवेहिं । पच्छा वहंति सीयं असुरिंदसुरिंदनागिंदा ।।२६।। सुरनम्वरपरियरिओ चित्ते कसिणहमीद अवरण्हे । छद्रुण अपाणेणं सिद्धत्थवर्णमि गंतु पहू ॥२७॥ हरिपत्थणाइ चउमुट्ठि काउ लोयं तओनमिय सिद्धे । मम मबमकरणिजं पावंति चरित्तमारूढो ॥२८॥ अह उक्खित्ते दुवहगुरुचरणभरंमि सामिणो ममगं । साहिजंपिव दाउं मणपजवनाणमुप्पन ॥२९॥ तह चत्तारि सहस्सा कच्छमहाकच्छपमुहनरवइणो। सयमेव विहियलोया पहुभत्तीऍ गहियंसु वयं ॥३०॥ कलहेहिं गइंदो इव अणुगम्मतो मुणीहि तेहिं पह । जलहित भूरिसत्तो कयमोणो विहरए वसुहं ॥३१॥ मिक्खाइ गओसामी भत्तीइ जणेण हयगयाईहिं। कन्नाहिं निमंतिजइ वत्थाभणेरणासहिं च ॥३२॥ तइया अमुणियमिक्खायरो जणो दाउ जाणइ न मिक्खं । तो मिक्खं अलहंता छुहामिभूया मुणी ते उ ।।३३।। हद्धी कुसेवगा इव मुत्तु पहुं इक्कगं तओ सन्चे। गंगातीरवणेसु जाया कंदाइआहारा ॥ ३४ ॥
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॥ ९२ ।।
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