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श्रीदे त्यश्रीधर्म संघाचार
विधौ ॥७१॥
Acharya Siri Kailas Gyanmandir ॥४०अइउन्भडरिउभडकोडीकरडीकरडयपाडणपडिट्ठो। सीहोर सीहसेणो तत्थाऽसि वसुंधरानाहो ॥४१॥ तस्सासि रामकण्हाDI
अग्रपूजायां | दइया दुहिआ उ जा अदुहियावि । पोयणपुरसामियपुण्णभद्दहरिमईयदेवीणं ॥ ४२ ॥ चउबुद्धिविसुद्धसुधासिंधुसचिवो सुबुद्धि-|
हरिकूटनामो से । आसी गुरुयविभूई पुरोहिओ तहय सिरिभृई ॥४३॥ अह पउमिणिखेडा तत्थ आगो भवमित्तसत्वाहो। सायर- संबंध: वाणिज्जे सजमाणसो चिंतए एवं ॥४४॥ निवडतमहंतसयावयागरो सागरो इमो रूंदो। कित्तिमकयसंधिच्छिद्दवजियं जाणवत्तमिणं ॥४५॥ पवणेरियकमलदलग्गजललवचवला तहा इमा कमला। एसो सुघडियविहडणपयडपयावो विहि हयासो ॥ ४६॥| अकयअखंडियसुकया पाएणं पाणिणो इमे तत्तो। न मुणिजइ किह जलहीउ आगओ इह पुणो होही ११४७॥ ता मज्झ सबसारेण सायरे नेव संपयं गंतुं । किंतु चिय मुत्तुं किंचि नायपञ्चयकुले कमि ॥४८॥ इय चिंतिय अन्भत्थिय सिरिभूई तस्स मंदिरे सोउ । वीसत्थो वीसामइ नियमुद्दामुद्दियं नउलं ॥४९॥ तो वेलाउलपत्तो सज्जियपोओ समुद्दकयपूओ। चलिओ पसत्थदियहमि भद्दमित्तो तओ कइया ॥५०॥ उल्लालियकल्लोलो जलनिहिजलनिवहजणि आवत्तो। तस्स उ अपुनपसरोव पसरिओ कालियानाओ॥५१॥ अइबहलगवलकजलसामलकार्यविणीकलावेण । पच्छाइयं नहयलं कुपुरिसअयसेण व खणेण ॥५२॥ धीरेयराण चरियं व अवधीरिय धीरमाधुरं धणिरा । धाराधरा धराए खलब उन्नइपयं पत्ता ॥ ५३ ।। खणमित्तदिट्ठनट्ठा अइचवला पायडियसयलसा । तह विज्जुला चमक्केइ पवंचपुण्णाण रिद्धिछ । ५३ ॥ अह उप्पायनिवाए खणे खणे कुणइ सायरो गयणे । नावा नावइलंखयधूया सिक्खेइ नहः विहिं ॥ ५५॥ अकडफुडियभंडभंडअइविरसमुक्ककंदं । अर्कदंति परोप्परकंठविलग्गा अतो लोगा ।। ५६॥ हा ताय! रख | रक्खसु हा संपइ माइ ! कह भविस्सामो ? । कुलदेवयाउ तुम्हिवि हा इण्डि कत्थवि गयाओ ? ॥५७॥ हा नत्थि कोवि देवो ॥७१।।
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