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________________ Shri M a h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalah Gyanmandie F नषेधिक्यां भुवनमल्लः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधौ ॥४०॥ भाविशुभनिबंधनं हरति चैनः । इय कालत्तयमुहयं जियाण तुह दंसणं दुलहं ।। ५८ ॥ स्वामिन् ! स्वदर्शनं कुरु तथा यथा स्यात् | | पुनर्न तदभावः । जचंधवेयणाओ चक्खुक्खयवेयणा दुसहा ॥ ५९॥ नामापि नाथ ! यस्ते वरमंत्रसधर्म कीर्तयति तस्य । मिच्छादसणदोसो लहु नासह किं परं भणिमो? ॥ ६० ॥ य इति जिन! त्वामन्यूनदर्शनं न्यूनदर्शनो नौति । स विशुद्धदर्शनः श्रयति सत्वरं सर्वदर्शित्वम् ॥६१॥" इय थोउ चेइयं जा सविम्हयं नियइ सबओ कुमरो। ता पिच्छइ पच्छिमदिसि पुक्खरिणि पवरपुस्खरिणिं ॥६२।। गंतुं तत्थ जलेणं महुरेणं सीयलेण विमलेण । गुरुवयणेण व अप्पं सोहिय जा वीसमइ सुत्थो।।६।। ता गुंजाहलहारो सल्लयसालाकरो हलिद्दनिहो। एगो समागओ तत्थ वानरो वानरीइ जुओ॥६४ास मणुयगिराइ कुमरं पणमिय भणइ पहू ! असरणसरणा । मुदयपवण्ण सुदक्खिण कुमार! मह सुणसु विन्नत्तिं ॥६५।। इह अडवीइ सयाविहु वानरजूहाहिवत्तमासी मे। एसा उ वल्लहा तह पाणेहिवि वल्लहा निचं ॥६६।। तं मह जूहं इण्हि वणंतरगयस्स वानरेण बला। अवहरियं अनेणं तं तु समत्थो | विनिग्गहिउं ॥६७।। नवरं न देइ मह तेण जुज्झिउं नेहकायरा एसा । अहमवि इमं न सकेमि इत्थ एगागिणि मुत्तुं ॥६८॥ संपइ तुमं महायस! मह नयणूसवकरो सुबंधुत्व । परउवयारिकपरो दिट्ठो पुण्णोदएण मए ॥ ६९॥ ता जाव अहं रिउवानरं लहुं निहणिऊण एमि इहं । ता नेहमीरु एसा निरुवदवा ठाउ तुह पासे ॥ ७० ॥ इय भणिय तयं मुत्तुं गओ इमो चिंतए तओ कुमरो। कह मणुअगिराइ पम् वयइ पवत्तइ य मइपुवं ॥७१॥ बलिअरिउणा पिअंजा निहयं न सुणामि ता ममवि जुत्तं । मरणंति भणि कुमरस्स वानरी पडइ वावि तो ॥७२॥ नहु मह इमीइ सरणागयाइ मरणं उविक्खिउं उचियं । इय तीइ कढणत्थं झंपावइ तत्थ जा कुमारो ॥७३॥ ताव न वावी न जलं न वानरी तत्थ किंतु अप्पाणं । वरमणिमयपासाए पल्लंकगयं नियइ कुमरो।।७४|| अह ॥४०॥ For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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