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विक्रमसेनकथा
श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥२७॥
Acharya Shri Kalaha स पिउणा लहु नयरा निग्गओ अमरिसेण | पत्तो कमेण एगं पलिं पल्लीवई तत्थ ॥ ७॥ तस्सागिइउन्भडभणियवयणरयणाइरंजिओ वाद । तं पल्लिवई भणइ भो इह चिट्ठसु सया सुहिओ |८|| कइयावि हरिणवइणा विणासिए तंमि पल्लिनाहमि। मिल्लज| णपणयचलणो जाओ सो चेव तत्थ पहू ॥९॥ अणवरयसत्तसंघायघायउप्पजमाणगुरुहरिसो। थीवालवुड़वीससियपमुहजणवं| चणप्पवणो ॥१०॥ पयईइच्चिय निस्संसचिट्ठओ पावत्थबुद्धी य । किं पृण तबिहबहुपावपयइजणजणियसंतोसो ॥ ११ ॥ इत्तो कुसुमपुराओ वेसमणो नाम सत्थवाहवरो । उग्घोसणपुई चलिय विविहजणनिवहसंजुतो ॥१२॥ बहुपणियपुन्नखरकरहवसहगुरुगंतिवेसरसमूहो । नियजीवियं व सत्थं महया जत्तेण रक्खतो ॥१३॥ कयतोसो बहुमुणिणा मुणिवइणा सिरिसमंतभद्देण । कुंभपुरं पइ चलिओ तं पल्लिपएसमणुपत्तो ॥१४ ॥ अह उड्डामरतडिदंडडंवरो जलहरो जलभरेण । सत्वत्थ पसरिएणं करेइ जलहिं व महिवलयं ॥ १५॥ तो मुणिवइणा मुणिणो भणिया भो नियह महियलं एयं । पयपवहनवयअंकुरपूरतससहससं| किन्नं ॥१६।। एयारिसंमि काले समणाणं नेव विहरि जुत्तं । तो इहयं पल्लीए उवस्सयं किंपि जाएह ॥१७॥ इय जा कर्हिति गुरुणो ता विक्कमसेणसंतिया धाडी । पडिया तीइ खणेणवि सत्थो गलहत्थिओ सवो ॥१८|| नवरं विक्कमसेणस्स वडणाभिहपहाणपुरिसेण । पिउणो गुरुत्ति काउं मिल्लेहिं रक्खिया गुरुणो॥१९॥ नियनियमल्लिपएसे मुक्का एगमि समुचियगिहमि । मुणिवइणा सह मुणिणो ठंति तहिं विविहतवनिरया ॥२०॥ सिरिमंसमंतभद्दस्स सरिणो सुक्कझाणजोगेण । अन्नदिणे उप्पन्न संपुग्नं केवलं नाणं ॥२१|| अह सन्निहियसुरेहिं पहयाओं दुंदुहीउ गयणमि । पणवनकुसुमबुट्ठी मुक्का झणझणिरभसलउला ॥२२॥ सुरसुंदरीहिं नट्ट पय|ट्टियं तयणु पल्लिनाहेण | पुट्ठा पल्लिनरा किमिणति तेऽवि तं कन्जममुणंता॥२३।। अन्नुन्नमुहनिरिक्षणवावारा जाव किंपि नहु विति।
॥२७३॥
PATRA
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