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________________ Shri Me i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघाचार हरिकूट संबंध विधौ HOMDHimal ॥५०॥ MIMANIPAHINITISHNA AMIRI emosaminimum solu केणं सुठुवि गच्छेज अच्चुययं ॥४४॥ जो पुण निरचणोच्चिय सरीरसुहकजमित्ततल्लिच्छो। तस्स न य बोहिलाभो न सोग्गई। प्रदक्षिणायां नेव परलोगो ॥४५॥ इय सोउ विमलगुत्तायरियसगासे विचित्तवेग निवो । गहियवओ विहरेई भावितो इय मणमि सया ।। ४६ ॥ जिय ! गहिउं इय दिक्खं तह गुरुसिक्खं चइत्तु तणुविक्खं । तो तवसु तवं तिक्खं सुहदिक्खं जेण दइरिक्वं (तुह सक्रखं)॥४७॥ इय मावित्तु अभिक्खं विसुद्धभिक्खंपि चइअ सिवसक्खि । कयअणसणो मुणींदो स मरिय जाओ मुहम्मिन्दो ।। ४८ ॥ अह संनिहियसुरेहिं निसीहिया तस्स पूइया तं च । नमिउं खेयरचउरो समण्णिओ चित्तवेगोवि ॥४९॥ तं दठ्ठ भाउणेहाउ मुच्छिओ कहवि लद्धचेयण्णो। सो तत्थ विमलगुरुणा विवोहिओ मा य सोय पुरो ॥५०॥ जहा-"न हु होइ सोइयवो जो कालगओ दढो चरित्तंमि । सो होइ सोइयत्वोजो संजमदुबलो विहरे ॥५१॥ अविय-सोचा ते जियलोए जिणवयणं जे नरा न याणं ति। सोचाणवि ते सोचा जे नाऊणं नवि करंति ॥५२॥ जओ-दावेऊण धणनिहिं तेसिं उप्पाडिआणि अच्छीणि। नाऊणवि जिणवयणं जे इह विहलंति धम्मघणं ॥ ५३॥ किंचको से सोओ सुचरियतवस्स गुणसुट्टियस्स साहुस्स। सुग्गइगमपडिहत्थो जो अच्छइ नियमभरियभरो ॥५४॥" इच्चाइयोहिओ सो तणंव चइऊण खयरचकित्तं । पडिवाइ पहजं असेसदुक्खक्खए सजं ॥५५।। अणुसरिय सुओयहिणो तक्खणमुल्लसियसेयझाणस्स । उप्पलकेवलस्स य सक्को से वंदिउं पत्तो॥५६॥ सो भयवमेसि धम्म कहिउं तदिवसमेव सिद्धिगओ। विहिया अब्भुयभूया हरिणा निवाणमहिमा से ॥५७।। एयं च जिणाययणं सक्केण विणिम्मियं इहं मज्झे । रिसहस्स भाउणो तह ठविआ पडिमाउ कणगमया ।। ५८ ॥ चक्करयणं व से धम्मचकंचिअ ठावियं इहेव इमं । भद्दासणं च बाहिं तस्सोवरि मंडवो | ॥५०॥ For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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