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________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥२२९॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash | जओ-अग्गीइ विणा दाहो उसाससमण्णियं इमं मरणं । रज्जूह विणा बंधो चिंता दुक्खाण रिछोली ॥३३॥ तथावारियवासा सच्छंदगामिणी अन्नमन्नमणुरत्ता । नारिव्व चलसहावा चिंता जीयं कयत्थेह ॥ ३४ ॥ दठुमह तं सचितं धणवह चिंतइ दुही सुओ मरिही । तो दुहविस्सरणकए वावारे कंमिवि खिवामि ||३५|| इय चिंतिय सो भणिओ धणवरणा वच्छ ! गच्छ अत्थत्थं । देसंतरं विणा तेण जेण पुरिसो न किंचि जओ ॥ ३६ ॥ नियभुयविद्वत्तविहवो मणोरहे मग्गणाणऽवि पुरंतो । सलहिज्जइ जो न लोए चलंतथाणू न सो पुरिसो ॥ ३८ ॥ तथा-जाई कुलं च रूवं तिन्निवि निवडंतु कंदरे विउले | अत्थुचिय परिवुडर जेण गुणा पायडा हुंति ||३८|| अह पिउणो आएसं एवं सोऊण बंधुदत्तो य। चिंतेइ न संपअइ सुहेण लच्छी जओ भणियं ॥ ३९ ॥ जा जीवियं जणेणं चडावियं नेव संसयतुलाए । ता किं संपन्नइ संपयाउ जा चिंतिया चित्ते ॥ ४० ॥ इय चिंतिय पिउआणाइ गिव्हिउं बहुयविविहभंडाई | आरुहिय पवहणं तरिय जलनिहिं सिंहलेहिं स गओ |||४१ ॥ सारेणुवयारेण उवयरिओ सिंहलेसरो तुट्ठो । मिल्हेह सुंकदाणं सबस्सवि तस्स पणियस्स ॥ ४२ ॥ बहुलाभेणं पणियं विधिणिउं गिन्दिउं च पडिपणियं । सो नियनयरामिमुहं अह चलिओ जाव जलहिंमि ||४३|| पबलपडिकूलपवणप्पणुल्लियं तस्स पवहणं तत्थ । तो बुद्धं तुट्टगुणं पावेण भवष्णवे व जिओ ||४४ || सुहकंखिरोवि पडिओ अणत्थसत्थंमि अहह किह अहवा । अत्थं पत्थेमाणा दुहदंदोलि लहंति जिया ||४५ || भणियं च - " अर्थानामर्जने दुःखमर्जितानां च रक्षणे । आये दुःखं व्यये दुःखं, घिगर्थे दुःखभाजनम् ||४६ || आसाइयसुहफलएण तेण अह मच्छगाइयंमि तर्हि । संसारे मणुयभवुव कहवि पत्तो रयणदीवो ॥४७॥ खणसंजोगविओगावहाई खणवसणऊसवमयाई । खणदिट्ठनट्ठपिम्माई जेण विहिणो विलसियाई For Private And Personal Gyanmandir बन्धुदसकथा ॥२२१॥
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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