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कथा
श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ।।२२०॥
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णेहिं । न य देवदाणवेहिंवि रक्खिजइ मच्चुणो पाणी ॥१८॥ तथा-जम्मजरामरणभएहिं विहुए वाहिवेयणा-01 बन्धुदत्तविहुरे। मुत्तुं जिणवरवयणं संसारे अस्थि नहु सरणं ॥१९॥ अविय-बहुविहआवइमझे जं जीविजइ खणंपि | तं चुलं । न चिरं खुहियमुहत्थं सरसफलमवट्टियं चिढ़े ॥२०॥ जं जेण कयं कम्मं सो तं अणुहवइ अप्पणो चेव । इय अमुणतो मूढो सयणजणो बिलवए यहुयं ।।२१।। काउं मयकिच्चाई तीसे जाओ कमेण गयसोगो।जं जीवाणं पायं पिम्मं सोगोय पंचदिणा ॥२२॥ तत्तो अनं कवं परिणावइ धणवई नियं पुत्तं । साबिहु विसूइयाए विवाहणंतरदिर्णमि मया ॥२३॥ अन्नं चिंतेइ जणो अप्पाणं सासयं व मन्नतो। पडिऊण अंतराले कुवियकयंतो कुणइ अन्नं ॥२४॥इय परिणियमित्ताओ परिणयणाणंतरिश्चिय दिणंमि । छन्भजाउ मयाओ उदयेणं असुहकम्मस्स ।।२५।। जओ-"पविसउ विवरं आरुहउ गिरिवरं मंतमाइ सिक्खेउ । आराहउ देवं वातहवि न छुइ पुरकयाणं ।२६॥दडोवरि पिडगसमं विसहत्थो बंधुदत्तु | इय नामं । से विहियं लोएणं बलवंतो खलु जणोजेणं ॥२७॥ अन्भत्थणापरस्सवि धणेण बहुगाऽवि से न को देइ । नियकलंकिं कजइ कन्नच्छेएण कणगेण ॥२८॥ तत्तो विसन्नचित्तो चि चिंतेइ बंधुदत्तुति । किमिमीइ पीवराइ व सिरीइ मह दइयरहियाए। ॥२९॥ जओ-केरिसया व विलासा का वा हिययस्स निव्वुई तस्स । जस्स न समसुहदुहिया पिया थिला न | वसइ घरंमि ॥३०॥ न चैवं भावयति-पत्नी प्रेमवती सुतः सुविनयो भ्राता गुणालंकृतः, स्निग्धो बंधुजनः सखाऽतिचतुरो नित्यं प्रसन्नः प्रभुः । निर्लोभोऽनुचरः परार्तिशमने प्राप्तोपयोगं धनं, पुण्यानामुदयेन संततमिदं कस्यापि संपद्यते ॥३१॥ तो सो चिंतासंतावतावियंगो पहीणसच्छाओ। दिवसे दिवसे खिजइ चंदो इव किण्हपखंमि ॥३२॥
॥२२०॥ For Private And Personal