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________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ ६७ ॥ Aradhana Kendra अहिं वरेहि य वरगंधधूव अक्खेहिं सव्वोवयारपूया मंगलदीवाइ तहा पक्खंदे जलियं जो तवनियमेण य सुक्खो पूजया विपुलं राज्यम् अज अट्ठमी दिनओ उभयकरधरियकलसा जे अ अइयगाहाए समहियजोयणपिहुलो बिटट्ठाई सुरहिं वड्रयणं भणियं इय पाडिहेर रिद्धी www.kobatirth.org ६६ | चाउकोणा तिनि पागारा ६६ रहऊण समोसरणें ६७ सोवाणपंतिआणं ६७ कोसदुगं नियतइए ७३ ७५ ७५ पिंडे मुक्ता पदे मुक्ता अरहंता भगवंतो स्वर्णादिबिंबनिष्पत्तौ ८५ तणं तस्स संखस्स ९० पायविहारचारेणं गमणागमणाए पडिक्कमह ९० ९९ सकेणं भंते! ९९ भ्रुवणेकगुरुजिणिंद १०० १०० सक्कत्थयाइयं चेहयवंदणं तणं सा दोवई For Private And Personal १०७ | तिहिं ठाणेहिं जीवा १०७ अन्नंपि तिप्पयारं १०७ इह पणिहाणं तिविहं १०७ चिंतड़ न अन्नक ११२ सव्वत्थवि पणिहाणं ११२ वन्नाइसु उवओगा ११३ वड्ढद्द धम्मज्झाणं १२५ १२५ १.२५ Acharya Shri Kailas स्वर्णादिप्रतिमा अनिएअवासो समुआणचारिआ चरेन्माधुकरीं वृत्तिम् १३२ कम्माण मोहणीयं १३३ उन्नयमविक्ख निन्नस्स १३४ अविहिकया वरमकयं १३९ | धर्मानुष्ठानवैतथ्यात् १४० १.४१. १.४१ १.४१ १४१ १४२ १.४३ १४३ १.४४ १.४५ १५१ १६० १६० १६४ Gyanmandir साक्ष्याद्यपादः ॥ ६७ ॥
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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