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श्रीदे०
| चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥ ८ ॥
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नेमितिओ तिकालविऊ। चिट्ठइ बारे मे दसणुस्सुओ मुच्चउ न वत्ति ? ॥३॥ मा मुअसु जंपइ निवो कोऽवसरो तस्स पिच्छणे | श्रीविजयअत्थ?। नय सोहइ वेयझुणी वाइज्जतीइ वीणाए|३४|| मंती विनवइ इमं मिल्हावसु सामि! जंतिकालन्नू । दीसइ न कोऽवि नृपकथा इह पिच्छणं तु अणिसं पहुपसाया ॥३५।। तो मुयसुत्ति निवुत्ते मुक्को सो वेत्तिणा तहिं पत्तो। मंतुच्चारणपुर्व उवविट्टो उचियठाणंमि ॥३६।। मग्गेउमागओ किं? अक्खेउं किंपि वा तुम इहयं । इय सायरं निवेणं भणिओ सो आह पयडमिणं ।। ३७ ।। जीवामि जाइएणेव जइवि निव! जाइउं तहवि किंपि । तुम्ह सयासाउ नेव संपयं संपयं अम्ह ॥३८|| सकिजइ अक्खेउं नजं तयं अखिउं इहायाओ।नायंभि पडीयारो कहंपि रोगुव जंहोइ ॥३९॥ मा संकमु किंपि इहं भण वीसत्थो तए जमिह नायं । इइ निवइअणु-10 नाए जंपइ नेमित्तिओ तत्तो ॥४०॥ पोअणपुरेसरोवरि इओ दिणा सत्तमे दिणे विजू । मज्झंदिणे पडिम्सइ नायमिणं मे निमित्तेण ॥४१॥ तो कुविओ जुबराया तल्लहुभायाऽऽह त विजयसेणो । किं नाम तमि दिवसे तुब्भुवरि पुण पडिस्सिहिइ ? ॥४२॥ ओएह असंबद्धपलाविरस्स निमित्तिआहमस्स कहं । जीहाए चवलतं ठाणे एयंमिवि इमस्स ॥४३॥ नेमित्तिओ पयंपइ मं पइ मा कुमर! कुण मुहा कोवं । ज मह न भावदोसो सुनाणदिटुं कहतस्स ॥४४॥ अविय-पवरोविहु दिवन्नू दिवं सकेइ नेव रक्खेउं । जं भाविस्सुहअसुहं तं पुण सो कहइ अवियप्पं ॥४५॥ किंच दिवसंमि तंमी सकारपुरस्सरं ममं पडिही। आभरणवत्थमाणिकजायरूवाइवरखुट्ठी ॥४६॥ एयस्स वरवरस्स व जहत्थकहणा महोवयारिस्स । मा कुप्पसुत्ति कुमरं भणिय निवो भणइ नेमित्तिं ॥४७॥ सिक्खियमिमं निमित्तं कत्थ तए? जं निरत्रए वयणे । सद्धा न होइ खलु पच्चयं विणा अह भणइ सोऽवि ॥४८॥प पवजंतेणं सह अयलबलेण सारही तस्स । मज्झ पिया संडिल्लो पदइओऽहंपि पिइमोहा ॥४९॥ सवं निमित्तजायं तं एवं सिक्खियं मए तइया। जिणसमएच्चिय ॥ ८ ॥
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