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श्रीदे०
चैत्य०श्रीधर्म० संघा
चारविधौ
॥४२१॥
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तइओ ऊसियनिसन्नाओ चैव ३ निसन्नू सिओ४ निमन्नो ५ निसन्नगनिसन्नओ चेव६ || १२ || निवन्नूसिओ७ निवन्नो८ निवन्नगनिवनगो य नायव्वो ९। एएसं तु पयाणं पत्तेयपरूवणं वुच्छं ||१३|| धम्मं सुकं च दुवे झायइ झाणाई जो ठिओ संतो। एसो काउरसग्गो उसिओसिअ होइ नायन्यो || १४ || धम्मं सुक्कं च दुवे नवि झायइ नविय अट्टरुदाई। एसो काउस्सगो दब्बुसिओ होइ नायव्वो । १५ ।। अहं रुदं च दुव्वे झायर झाणाई जो ठिओ संतो। एसो काउस्सग्गो दब्बुसिओ भावउ निसन्नो ॥ १६ ॥ धम्मं सुक्कं च दुवे झायइ झाणाई जो निसन्नो उ। एसो काउस्सग्गो निसन्नुसिओ होइ नायव्त्रो ॥ १७ ॥ धम्मं सुकं च दुवे न झायइ नविय अट्टरुदाई। एसो काउस्सग्गो निसन्नाओ होइ नायव्त्रो ||१८|| अहं रुदं च दुवे झायह झाणाई जो निसन्नो उ । एसो काउ|स्सग्गो निसन्नगनिसन्नओ चेव ।। १९ ।। धम्मं सुकं च दुवे झायइ झाणाई जो नित्रनो य। एसो काउस्सग्गो निवन्नुसिओ होइ नायडो |||२०|| धम्मं सुकं च दुवे नवि झायइ नविय अट्टरुद्दाई। एसो काउस्सग्गो निवन्नओ होइ नायव्वो ॥ २१॥ अहं रुदं च दुवे झायह झाणाहं जो निवन्नो य । एसो काउस्सग्गो निवन्नगनिवन्नओ नाम ||२२|| निम्मियदुग्गइपोसा,दोसा घोडगलयाइया जत्थ । जत्तेण वजियव्वा जिणपडिकुट्टत्तिका || २३ || देहमइजडसुद्धी सुहदुक्खतितिक्खया अणुप्पेहा । झायइ सुहं झाणं एगग्गो काउसग्गंमि ||२४|| जह करगओ निकिंतर दारुं इन्तो तहेव जंतो य । इय कांति सुविहिया काउस्सग्गेण कम्माई ||२५|| काउरसग्गे जह सुट्टियस्स भजति अंगमंगाई । इय भिदंति सुविहिया अट्ठविहं कम्मसंघायं ||२६|| दिसतवा तत्ततवा महातवा काउसग्गथिरचित्ता | आमोस हिपमुहाहिं लद्धीहिं जुआ हवंति मुणी || २७ || गयगवयरुदसद्दूलसीहभुयगाइ दुट्ठजंतुगणा । थिरकयकाउस्सग्गस्स साहुगो नेव पभवंति ।। २८ ।। काउस्सग्गंमि ठिओ जिणबिंबं सुत्तमत्थमुभयं च । सुहभावबुडिहेउं अन्नंपि सुहं
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नागदत्तरामकथा
॥४२१॥