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धर्मरुचि
कथा
श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघा चारविधौ ॥१३९॥
| गजुत्ततवा । पाविअदेवभवा सा इय जाया दोवई कुमरी ॥५१॥ अहसा इह चंपाए सागरदत्तप्पियाइ भद्दाए । सुकुमालियत्ति जाया | दिव्ववसा कहवि अइदुहगा ।। ५२ ।। घरजामाउअविहिणा जिणदत्तसुएण सागरेण इमा । परिणिय चइया जलणाइअहिय| हत्थाइफासाओ ॥ ५३॥ ससुरउवलद्धपिउणा भणिओ किमदोसपइवया मुक्का। नवरि मरामि न तं पुण गच्छंति विणिच्छए मुक्को ॥५४॥ पुण दमगस्सुवणीआ तफासं सोऽवि सहिउमचयंतो । सुत्तं मुत्तुं नियखंडघडवसणाई स गहिय गओ॥५५॥ पुत्रकयदुक्कयफलं इअ वच्छे ! मुणिय मा विस्रेसु । इय पिउविबोहिया सा महाणसे देइ दाणाई ।। ५६ ॥ भिक्खागयसमणीभो कयाइ तं कुंटलाई पुच्छंतिं । गोवालियापवत्तिणी गाहइ गिहिधम्मजइधम्मं ॥ ५७ ॥ समणीणुवस्सयंतो कप्पइ समतलपयावणाइत्ति । भणियाविहु उस्सग्गाइ कुणइ पुण बाहिरुजाणे ॥ ५८ ।। अह द? देवदत्तं सिपियत्थं सायरं पणनरेहिं । लालिज्जतिं चिंतइ लायन्नमहो अहो सुभगा ।। ५९॥ निन्भग्गाऽहमिगस्सवि आसि अणित्ति हुञ्ज ताऽहंपि । छट्ठट्ठमाइणाऽणेण निचमिय कुणइ दुनियाणं ॥ ६० ॥ हत्थाइधोविरा न हु जुञ्जइ इय गुत्तभयारीणं । पुण पुण भणिजमाणी गुरुणीहि ठिया पुढो निलए ॥ ६१ ॥ सच्छंदचिट्ठिआ अद्धमासभत्तेण मरिय सा जाया। नवपलिआऊ देवी अपरिग्गहिआ विइअकप्पे ॥ ६२ ।। चविउं कंपिल्लपुरंमि दुवयचुलणीण दोबई जाया । पणपंडवे वरद सा सयंवरे वंदिय जिणित्ति ॥६३॥ अत्र षष्ठांगसूत्रं-"तए णं सा दोबई रायवरकन्ना जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता जिणघरं अणुपविसइ, जिणघरं अणुपविसित्ता जि| पपडिमाणं आलोए पणामं करेइ, पणामं करेत्ता लोमहत्थयं परामुसइ, परामुसित्ता एवं जहा सूरियामे जिणपडिमाओ अच्चइ तहेव भाणियवं जाव धूवं डहद, वामं जाणुं अंचेइ, करयलजाव कटु एवं वयासी-नमोत्थुणं जाव संपत्ताणं, वंदइ नमसइ,
T i ll illIII . Title INDIANRAAAAAAMIUMARITAMBHARAPARIANERAPHIRITUDIAIKINNAPALI
HAMARIYANAPAN
HANUPAIRPURIHIP
॥१३९॥
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