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अमिततेजः कथा
श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१६८॥
वरपि दाणं जह अपत्ते ।।१४।। सुमिलाणवयणनयणा अह विहडियसंधिबंधणा धणि। थरथरहरंतगत्ता देवी पंचत्तमणुपत्ता ॥१५॥ तं निच्चिद्वं दट्टुं राया मुधुच सुट्ठ पलवित्ता । चिंतइ पाणेहि कयं इमीद पाणप्पियाइ विणा ॥१६॥ ता दारुभारनिचियं चियं निवो सह इमीइ आरुहिउं । जालेइ सयं जलणं जलिरुजलविरहजलणोऽवि ॥ १७॥ अह दिववत्थजुअला विलुलंतसकुंडला य गयणयला । ओयरिया खयरा दुन्नि झत्ति घोलंतलंकारा ॥१८॥ तत्थेगेणं विजानिमंतियजलेण जा चिया सित्ता । उप्पइय गया देवी विमुतु अट्टहासं ता ॥१९॥ तो विम्हियहियएणं निवेण भणियं अहो अहो किमिणं ? । जंपंति जोडियकरा ते खयरा जह | पहु ! सुणेहि ॥२०॥ सिरिअमियतेयविजाहराहिरायस्स दोऽवि पियपुसा । संमिन्नसोयदीवसिहनामया मो निमित्तविऊ ॥२१॥
जा अजवि दो अम्हे समागया इत्थ कीलणनिमित्तं । ता सुणिमो करुणसरं गयणे एगाइ इत्थीए ॥२२॥ हा नाह! नाह ! सिरिविजयराय हा हा सयंपहे अंमो! हा अमियतेयखयरिंदमाय महवीर मह वीर ।।२३।। अहह अगाहब मम हरेइ खयराहमो इमो कोऽवि । ता एह एह मोयह इमाउ पावाउ मं झत्ति ॥२४॥ नाउ नियं नाह! भइणि तो रे रे ठाहि ठाहि इय भणिरा । तप्पुट्टि | लग्गा मो कड़ियसुकरालकरवाला ॥२५॥ णे द? असणिघोसो भणिओ रे खेयराहम! अणज । पुरिसो हवेसु सत्थं करेसु हंत
णु विणट्ठोसि ।। २६ ।। ता देवीए भणिया पुजइ कजेण जाह जोइवणं । चइहि वेयालिणिविजमोहिओ मा पहू पाणे ॥ २७ ॥ | पत्तेहिं तयणु लहु इह मयदेवीरूवधारिणीइ तुमे। वेयालिणीइ सहिया दिट्ठा जलियानलपविट्ठा॥२८॥ पच्चक्खं चिय सेसं तुन्भं इय सोउ जा निवो अहियं । जाओ दुहिओ ता तेहिं पणिओ मा पहु! विसीय ॥२९॥ जं कित्तियमित्तो सो तुम्हाणं अग्गओ असणिघोसो। गम्मउ परं वियड़े फुरइ जमम्हं इय निमित्तं ॥३०॥ तो तेहिं तत्थ नीओ नायपबंधेण अमियतेएणं । संभासिओ
HINAHETAIIASTIHIROHINATIPATI
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HIDINAME
HIDANANDHAMATIPRIMURARIP
| ॥१६८॥
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