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सूत्रतागसूत्रे वेदान्तीयैकात्मवादः-. एकात्मवादीयपूर्वपक्षं दर्शयति सूत्रकारः---'जहाय' इत्यदि ।
जहा य पुढवी थूभे एगे नानाहि दीसइ । एवं भो कासिणे लोए विन्नू नाणाहि दीसइ ॥९॥
छाया---- यथा च पृथिवी स्तूप एको नानाहि दृश्यते । एवं भोः कृत्स्नो लोकः विज्ञः ( विद्वान् ) नानाहि दृश्यते ॥९॥
अन्वयार्थ:--- ( जहा-यथा ) येन प्रकारेण ( पुढवीथूभे-पृथिवीस्तूपः) पृथिवी समुदाय रूपोऽवयवी ( एगेय-एकोऽपि ) एकरूपेण स्थितोऽपि ( नानाहिदीसइ-नाना
वेदान्तियों का एकात्मवाद एक ही आत्मा मानने वालों का पूर्वपक्ष सूत्रकार दिखलाते हैं। 'जहा' इत्यादि ॥ . , शब्दार्थ-'जहा-यथा' जिस प्रकार पुढचीथुमे ढवीस्तूपः' पृथ्वीसमूद 'पगेय-एकोऽपि' एक ही "नानाहि दीसइ-नाना दृश्यते” नानारूपों में देखा जाता है। एवं-एवम्' इसी प्रकार 'यो-हे' हे जीवों 'किसणेलोएकृत्स्नो लोकः समस्तलोक 'विन्नू-विज्ञः आत्मस्वरुप 'नाणाहि-नाना' अनेकरुषों में 'दीसइ-दृश्यते' देखा जाता है।
अन्वयार्थ जैसे पृथ्वी रूप स्तूप एक होने पर भी सरिता सागर, पर्वत, नगर, ग्राम, घट, पट, आदि के भेद से अनेक रूपों वाला दिखाई देता है, एवं इसी प्रकार यह जड़ चेतन रूप सम्पूर्ण लोक ज्ञान स्वरूप आत्मा
वहातियाना भवाह' એક જ આત્માને માનનારા લેકેની માન્યતા સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા પ્રકટ छ. "जहा य" २४ाय -'जहा-यथा वी शत पुढवीमे-पृथ्वोस्तूपः' पृथ्वी समूड एगेय-एकोऽपि' ४०८ 'नानाहि दीसइ-नाना दृश्यते' मने ३पोमा हेपाय छे. 'एवं-एवम्' मेर प्रमाणे 'भो-हे वो ‘कसिणे लोए-कृत्स्नो लोक' समत यो 'विन्न-विज्ञः' मात्मस्व३५ 'नाणाहि-नाना' भने ३सोमा 'दीसह-दृश्यते' अवामा मावे छ. ॥६॥
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