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सामवार्थ बोधिनो टीका प्र. . अ. १ उ. ४ पुनः अम्यतीर्थ कमतनिरूपणम् ४२७
अन्वयार्थः(लोगवाय) लोकवाद पौराणिकानां सिद्धान्तम् । (णिसामिज्जा) निशा मयेत्, श्रृणुयात् पौराणिकवादः श्रोतुं योग्य इति भावः ।
एवं (इह) इह अस्मिन् संसारे (एगेसिं) एकेपा केषांचित् (आहिये) आख्यातम्-कथनम् अस्ति परन्तु वस्तुतः- पौराणिकानां कथनम् (विपरीयपक्षसभूयं) विपरीतप्रज्ञासंभूतम् विपरीतबुद्ध्या रचितं विद्यते । . तमा (अन्नउत्त) अन्योक्तम् अन्यैरविवेकिभि यत्कथितम् (तयाणुगं) तदनुगम्= तदेवाऽनुगच्छतोति भावः ॥५॥
टीका
'लोगवाय' लोकवादम्, लोकानां= पौराणिकलोकानां वादः= सिद्धान्तः फिर उन्हीं के मत का निरूपण करते हैं-" लोगवायं " इत्यादि।
शब्दार्थ-~-'लोगवाय-लोकवादम्' लोकवाद अर्थात् पौराणिकोंके सिद्धांतको 'णिसामिज्जा-निशामयेत्' सुनना चाहिए 'इह-इह' इस संसार में 'एगेसिएकेषां' किन्हीका 'आहियं-आख्यातम् ' कथन है। 'विपरीयपन्नसंभूय-विपरीत प्रज्ञासंभूतम् ' परंतु वस्तुतः पौराणिकोंका सिद्धांत विपरीत बुद्धिसे रचित है, तथा 'अन्नउत्त-अन्योक्तम् ' अन्य अविवेकियोंने जो कहा हैं 'तयाणुगं-तदनुगम् ' उसका अनुगामी हैं ॥५॥
-अन्वयार्थलोकवाद को, जो पौराणिको का एक मन्तव्य है, सुनना चाहिए अर्थात् वह सुनने योग्य है । ऐसा किन्हीं का कथन है, किन्तु उनका यह कथन विपरीत बुद्धि से कहा हुआ है तथा अन्य अविवेकियों के कथन के समान है ॥५॥
सूत्र॥२ मन्यता ना मतनु विशेष नि३५४ रे छे "लोगवाय” त्या :
शाय-'लोगवाय-लोकवाद म्' या अर्थात् 'पोशना सिद्धान्तने 'णिसाविजा-निशामयेत्' समय मे. 'इह-इह' PAL संसारमा 'एगेसि-एकेषां' मेनु we 'आहिय-आख्यातम्' थन छ 'विपरियपन्नसंभूय-विपरीतप्रज्ञासंभूतम्' परंतु तुत:
पौने सिद्वांत विपरीत सुद्धिथी २यित छ, तथा 'अन्नउत्त-अन्योक्तम्' अन्य अविवाश्यायो ४ऱ्या छ तयाणुग-तदनुगम् तेनु मनुगामीछे ॥५॥ સૂત્રાર્થ– પૌરાણિકનું એવું મંતવ્ય છે કે લેકવાદનું શ્રવણ કરવું જોઈએ તેઓ લકવાદ શ્રવણ કરવા યોગ્ય માને છે. પરંતુ તેઓ વિપરીત બુદ્ધિને લીધે આ પ્રકારનું કથન કરે છે તેથી તે કથનને અન્ય અવિવેકી જનાના કથન સમાન જ માનવું જોઈએ
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