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समाधिनी टीका प्र. श्रु. अ. २ उ. १ भगवदादिनाथकृतो निजपुत्रोपदेशः ४११
छायापुरुष उपरम पापकर्मणा पल्यान्तं मनुजस्य जीवितम् । सक्का इह काममूच्छिता मोहं यान्ति नरा असंवृताः ॥१०॥
अन्वयार्थ:( पुरिस ) पुरुष! हे पुरुष ! ( पावकम्मुणा ) पापकर्मणा-प्राणातिपातादिकर्मणा (उपरम) उपरम-निवर्तस्व यतः (मणुयाण) मनुजानाम् जीवियम् जीवि
मिथ्याज्ञान से युक्त तपस्या के द्वारा चार गतियों का भ्रमण नहीं कर सकता है, किन्तु वीतराग द्वारा प्रणीत मार्ग से ही श्रेयस (कल्याण) की प्राप्ति होती है भवभ्रमण का निरोध होता है । इस अर्थवाला उपदेश देने के इच्छुक पत्रकार यह गाथा कहते हैं-"पुरिसो रम इत्यादि।
शब्दार्थ-'पुरिसो-पुरुष' हे पुरुष ! 'पावकम्मुणा-पापकर्मणा' प्राणातिपातादि पापकर्मसे 'उपरम-उपरम' तू निवृत्त होजा क्योंकि 'मणुयाणं-मनुजानाम्' मनुष्यों का 'जीवियं-जीवितम्' जीवन 'पलियंत-पल्यान्तम्' नाशवंत हैं 'इह-इह' इस संसारमे 'सन्ना--सक्ताः' जो आसक्त है तथा 'काममुच्छिया. काममूच्छिताः' कामभोगो में आसक्त हैं एवं 'असंवुडा-असंवृताः' प्राणातिपात
आदिसे निवृत्तनहीं हुए हैं 'नरा--नराः' ऐसे मनुष्य 'मोहं-मोहम्' मोहको 'जति--यान्ति' प्राप्त करते हैं ॥१०॥
-अन्वयार्थ... हे पुरुष ! तू पापकर्म से विरत हो क्योंकि मनुष्यों का जीवन पल्योपन
મિથ્યાજ્ઞાનથી યુક્ત તપસ્યા દ્વારા ચાર ગતિઓનું ભ્રમણ રોકી શકાતું નથી, પરંતુ વીતરાગ પ્રણીત માર્ગનું અનુસરણ કરવાથી જ ભવભ્રમણને નિરોધ થાય છે અને કલ્યાણ કારી મેક્ષની પ્રાપ્તિ થાય છે. આ વાતનું પ્રતિપાદન સૂત્રકારે નીચેની ગાથા દ્વારા કર્યું 2. "पुरिसोरम" त्याह
Auth' 'पुरिसो-पुरुष' : ५३५ ? 'पावकम्मुणा-पापकर्मणा" प्राgulaura पोरे पा५४ थी 'उपरम-उपरम' तु निवृत्त थJan उभरे 'मणुयाण-मनुजानाम् भनाध्यांनु' 'जीविय-जीवितम्' वन 'पलियत -पल्यान्तम्' नाथपंत छ. 'दह-नई' DAN संसारमा 'सन्ना-सक्ताः' ने सासरत छे तथा 'असं बुडा-असंवृताः' प्रतिपात पोथी निवृत्त नथी थया. 'नरा-नराः' सेवा मनुष्य। 'मोह-मोहम्' भने जतिमन्ति' प्रास ४२ छ. ॥१०॥
-स्त्रीહે પુરૂષ! તું પાપકર્મથી વિરત થા, કારણ કે માણસનું જીવન વધારેમાં વધારે
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