________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समयार्थ बोधिनी टीका प्र. श्रु अ. २ उ. २ स्वपुत्रेभ्यः भगवदादिनाथोपदेशः ५८१ स्थानसेवी भवति एतादृशं साधु तीर्यकराः सामयिकः समभावेन वर्तनशीलः इति नामाऽभिधानं कृतवन्त इत्यतो न भयभीता भवेयुरिति भावः ॥१७॥ उसिणोदग' इत्यादि ।
मूलम्
उसिणोदगतत्तभोइणो धम्मट्टियस्स मुणिस्स हीमतो संसग्गियासाहरा असमाही उ तहागयस्सवी ॥१८॥
छायाउष्णोदकतप्तभोजिनो धर्मस्थितस्य मुने होमतः। - संसर्गोऽसाधूराजभि रसमाधिस्तु तथागतस्यापि ॥१८॥ जो स्त्री पशु और पण्डक से रहित स्थान का सेवन करने वाला है, ऐसे साधु को तीर्थकर सामायिक आदि चारित्र वाला कहते हैं अर्थात् ऐसा साधु ही सामायिक चारित्र आदि पाँच प्रकार के चारित्रों का अधिकारी होता है। अतएव साधु को भयभीत नहीं होना चाहिए ॥१७॥ " उसिणोदग" इत्यादि।
- शब्दार्थ-'उसिणोदगतत्तभोइणों-उष्णोदकतप्तभोजिनः' बिना ठंडा किआ गरम जल पीने वाले 'धम्मडियस्स-धर्मस्थितस्य' श्रुतचारित्र धर्म में स्थित 'हीमतो-हीमतः' असंयममें लजित होने वाले 'मुणिस्स-मुनेः' मुनिको 'राइहि-राजभिः राजा आदि से 'संसग्गि-संसर्गः संसर्ग करना 'असाहु-असाधुः बुरा है 'तहागयम्स वि--तथागतस्यापि वह संसर्ग शास्त्रोक्त आचार पालने वाले का भी 'असमाही--असमाधिः समाधिका भंग करता है।॥१८॥ કરનારા છે, એવા સાધુને તીર્થકર ભગવાને સામાયિક આદિ ચારિત્રવાળા કહ્યા છે. એટલે કે એ સાધુ જ સામાયિક ચારિત્ર આદિ પાંચ પ્રકારના ચારિત્રને અધિકારી હોય છે. એવું જાણીને સાધુએ ભયભીત થવું જોઈએ નહીં
“उसिणोदग" त्याह . . शहा- 'उसिणोदगतत्तमोइणो-उष्णोदकतप्तभोजिन' या कारनु जरभ पाणी पावावा 'धम्मट्टियस्ल धर्मस्थितस्य श्रुतयारित्र धर्ममा स्थित 'हीमतो-डीमतः असयमयी erot थवावा 'मुणिस्स-मुनेः मुनिना 'राइहि-राजभिः' २ion वगेरेथा 'ससग्गि-संलग:' संसग ४२वो 'असाहु-असाधु' ५२।. तहागयस्सवि-तथागतस्थापि ते ससा शास्त्रीत माया पायावामाने ५९'असमाही-असमाधिः समाधिन। ભંગ કરે છે. ૮૫
For Private And Personal Use Only