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सूत्रकृताङ्गसूत्रे
मूलन्
संबुडकम्मस्स भिक्षुणो जं दुक्खं पुढे अयोहिए। तं संजमओऽवचिजई मरणं हिच्चा वयंति पंडिया॥१॥
छाया-- संवृतकर्मणो भिक्षोः यदुःखं स्पृष्टमबोधिना। तत्संयमतोऽपचीयते मरणं हित्वा व्रजन्ति पण्डिताः ॥१॥
अन्वयार्थ:---- (संवुड कम्मस्स) संवतकर्मणः-निरुद्धाश्रवद्वारस्य (भिक्खुणो) भिक्षोः साधोः (अबोहिए) अबोधिना=अज्ञानवशेन (ज) यत् (दुक्खं) दुख तज्जनकमष्टविधं कर्म वा
शब्दार्थ-'संवुडकम्मस्स-संवृतकर्मणः' आठ प्रकारके कर्मों का आगमन जिसने रोकदिया है । ऐसे 'भिक्खुणो-भिक्षोः' साधुको तथा 'अवोदिए-अबो धिना' अज्ञान वशम्से 'ज-यन्' जो दुक्खं-दुःखम् दुःख 'पुटुं-स्पृष्टम्' बंधा है 'तं-नत् वह दुःख 'सं नमओ-संयमत:' सतरस प्रकारके संयम से 'अवचिजद -अपनीयते' प्रतिक्षण क्षीण हो जाता है और 'पंडिया- पंडिताः' वे पंडित पुरुष अर्थात् सन् असत् के विवेक वाला पुरुष 'मरणं हिच्चा- मरणं हित्वा मरग को छोडकर 'वयंति-वजन्ति मोक्षको प्राप्त करते हैं ॥१॥
अन्वयार्थ आश्राद्वारों को रोक देने वाले साधु के अज्ञान के कारण बंधे हुए या निकाचित हुए दुःख अथवा आठकर्म भगवान के कहे सतरह प्रकार के संयम से
हाथ-'सवुडकममस्त-संवृतकर्मण' 2418 प्रा२ना भनु मनी शी ही छ, वा 'भिक्खुणो-भिक्षो' साधुने तथा 'अबोहिए-अबोधिना' मान पशथी 'ज-यत्' 'दुक्ख-दुःखम् दुः५ 'पुढ-स्पृष्टम्' मांधेत छ 'त-तत्' ते दुः। 'संजमओ-संयमतः' ५५0 ४ प्रारना संयमयी 'अवचिजइ-अपचीयते' १२ क्षणे क्षी 25 लय छे भने 'पंडिया-पंडिताः' ते ५रित ५३५ अर्थात् सत्य मसत्यना विवा ॥ ५३५ 'मरण हिच्चा-मरण हित्वा' भरने छोडीने 'वयंति-व्रजन्ति' भोक्षने प्रात કરે છે. ૧
-सूत्राथઅજ્ઞાનને કારણે બાંધેલા અથવા નિકાચિત થયેલા આઠ પ્રકારના કર્મોના આશ્રવ દ્વારેને બંધ કરનાર સાધુ, ભગવાન્ દ્વારા આદિષ્ટ સત્તર પ્રકારના સંયમનું પાલન કરવાથી
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