Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 656
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६३८ सूत्रकृताङ्गसूत्रे जे इह सायाणुगा नरा अझोववन्ना कामेहिं मुच्छिया ___८ ९ १० १४ १२ १५ १३ ११ किवणेण समं पगभिया न वि जाणंति समाहिमाहित॥४॥ छाया य इह सातानुगा नरा अध्युपपन्नाः कामेषु मूञ्छिताः । कृपणेन समं प्रगम्भिता नापि जानन्ति समाधिमाख्यातम् ॥४॥ __ अन्वयार्थ:(इह) इहलोके (जे नरा) ये नराः (सायाणुगा) सातानुगाः= सुखशीलाः (अज्झोववन्ना) अध्युपपन्नाः =ऋद्धिरससातगौरवेषु गृद्धाः, तथा (कामेहिं) कामेषु = शब्दादिषु (मुच्छिया) मूञ्छिताः (किवणेण) कृपणेन इन्द्रियपराजितेन(सम) शब्दार्थ—'इह-इह' इसलोकमें 'जे नरा-ये नराः' जो मनुष्य ‘सायाणुगा सातानुगाः' सुख के पीछे चलते हैं 'अन्झोववन्ना-अध्युपपन्नाः' तथा ऋद्वि रस और साता गैरवमें आसक्त है एवं कामेहि-कामेषु' शब्दादि कामभोगों में मुच्छिया-मूच्छिताः' आसक्त है 'किवणेण-कृपणेन । वे इन्द्रिय लंपटो के 'समं-समम्' समान् ‘पगभिया-प्रगल्भिताः' धृष्टता पूर्वक कामभोगका सेवन करते हैं 'अहियंपि-आहितमपि' ऐसे लोग कहने पर भी 'समाहि-समाधिम् समाधि धर्मध्यानको 'न-न' नहीं 'जाणंति-जनन्तीति' जानते हैं ॥४॥ -अन्वयार्थ:इस लोक में जो मनुष्य सुखशील आराम चाहने वाले होते हैं, ऋद्धि रस और साता के गौरव में आसक्त हैं तथा शब्दादि कामभोगो में मूर्छित हैं, शहाथ - 'इह-इह' २ मा 'जे नरा-ये नराः' मनुष्य 'सामाणुगा-साता. नुगाः' सुमनी पा७७ या छ 'अन्झोवयन्ना-अध्युपपन्नाः' तथा ऋद्धि२२१. २मने साता भैरवमा सासरत छ मेयम् 'कामेहि-कामेषु' पणेरे अमलोगोमा 'मुच्छियामूच्छिताः' मासत छ 'किवणेण कृपणेन' ते न्द्रय पटोन'सम-समम्' समान 'पगभिया-प्रगल्भिताः' धृष्टतापूर्व मनामनु सेवन ४३ छ 'अहिय पि-आहिताप' मावा सो ४ा छतi ५ 'समाहि-समाधिम्' समाधि-ध्यानने 'न-न' नथी 'जाणति-जानन्तीति' लाता. ॥ ४॥ -सूत्राथ:આ લેકમાં જે મનુષ્ય સુખશીલ આરામને પસન્દ કરનારા હોય છે. અદ્ધિ, રસ અને સાતાના ગૌરવમાં આસક્ત છે, તથા શબ્દાદિ કામગીમાં મૂછિત છે, તેઓ કૃપણના For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709