Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 665
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सार्थबोधिनी टीका प्र . साधूनां परिषहोपसर्ग सहनोपदेशः अन्वयार्थः ( पच्छा) पश्चात् (मा) मा ( असाहुया भवे) असाधुता कुगतिगमनादि रूपा भवेत्, अतः (अच्चेहि ) अत्येहि विषयसंगादात्मानं मोचयेत्यर्थः, (अप्पगं ) आत्मानम् (अणुसास) अनुशाधि = आत्मनः शासनं कुरु ( असाहु ) असाधु : = हिंसा - दिकारी पुरुष : ( अहियं च ) अधिकं च (सोयइ) शोचति (से) सः (थणइ) स्तनति= सशब्दं निःश्वसिति तथा ( बहू परिदेवर) बहु परिदेवते (बहु) अत्यधिकं परिदेव विलपति ||७|| - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૬૭ टीका 'पच्छा' पश्चात् 'मा असाहुया भवे' असाधुता मा भवेत् दुर्गतौ गमनं न भवतु इति विचार्य, 'अच्चेहि अप्पगं' अत्येहि विषयसेवनतः शब्दार्थ- 'पच्छा-पश्चात् ' पीछे 'मामा' नहीं असाहुया भवे - असाधुता भवेत् दुर्गतिगमन हो इसलिये 'अच्चेहि - अप्पमं' ' अत्येहि - आत्मानम्' विषयसेवन से अपने आत्माको अलग करो 'अणुशास- अणुशाधि ' शिक्षा दो 'असाहु - असाधुः' हिंसादि करने वाला असाधु पुरुष 'अहियं च - अधिकं च' अधिक रूप से 'सोय - शोचति' शोक करता है 'से सः' वह 'थणइ स्तनति' अधिक चिल्लाता है तथा 'बहू परिदेव - बहु परिदेवते' अधिक रूप से विलाप करता है ||७|| - अन्वयार्थ - - बाद में कुगति गमन आदि रूप असाधुता न हो अतः अपनी आत्मा को विषयों से पृथक कर लो, आत्मा पर शासन करो असाधु पुरुष को संयम रहित पुरुष को शोक करना पड़ता है ऊची वासे लेनी पड़ती है और अत्यन्त विलाप करना पड़ता है ॥७॥ — टीकार्थ पश्चात् असाधुता न हो अर्थात् दुर्गति में गमन न करना पडे, ऐसा शब्दार्थ - 'पच्छा-पश्चात् पाछ 'मा-मा' नन 'असाहुया भवे- असाधुता भवेत्' दुर्गति गमन थाय भेटूसा भोटे 'अच्चेहि - अत्यहि' अप्पम आत्मानम्' विषय सेवनथी आत्मानेा मने पोताना आत्माने 'अणुशास- अणुशाधि शिक्षा आयो 'असाहु - असाधुः' डिसा वगेरे खावाणा साधुष 'अहिय च अधिक च' अधि ३पथी सोय - शोचति' शो ४२ छे 'से सः' ते 'थाइ स्तर्नात' वधारे मुभो पाउ छे तथा बहु परिदेव बहु परिदेवते' पधारे उपथी विसाय रे छे. ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only -:सूत्रार्थः- પાછળથી આ ભવનું આયુષ્ય પૂરૂ કરીને) દુ'તિગમન આદિ અસાધુતાની પ્રાપ્તિ ન થાય, તે ભાવનાથી આત્માને વિષયેામાંથી અલગ કરી દો. આત્મા પર શાસન કરે આ સાધુ પુરુષને (સંયમ રહિત પુરુષને ) શેક કરવા પડે છે, નિસાસા નાખવા પડે છે અને અત્યન્ત વિલાપ કરવા પડે છે. છા :- टीअर्थ : મનુષ્યભવ સબધી આયુષ્ય પૂરૂ કરીને અસાધુતા પ્રાપ્ત ન થાય—દુંતિમાં જવું ન

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