Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 661
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org समार्थ बोधिनी टीका प्र. अ. अ. २ उ. २ स्वपुत्रेभ्यः भगवदादिना थोपदेशः पुनरप्युपदिशति सूत्रकारः - एवं कामेसण, इत्यादि । मूलम् - ३ ४ ५ एवं कामेसणं विऊ अजसुए पहएन संयवं । の Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ ११ १२ १३ कामी कामे ण कामए लद्धे वावि अल हुई || ६ || ६४३ छाया एवं कामैषणायां विद्वान् अद्यश्वः प्रजह्यात्संस्तत्रम् | arit arora कामयेत् लब्धान् वाप्यलव्धान् कुतश्चित् || ६ || अन्वयार्थ ( एवं ) एवम् उपर्युक्तप्रकारेण ( का मेसण) कामेपणायां शब्दाद्युपभोगरूपायां (विऊ) विद्वान निपुण: ( अज्जगुए) अद्यधः (संथवं ) संस्तवम् = परिचयं कामेपणाम् सूत्रकार पुनः उपदेश देते हैं -- “ एवं कामेसणं' शब्दार्थ - ' एवं - एवम् ' उपर्युक्त प्रकार से 'कामेसणं- कामेपणायाम् ' शब्दादि विषयों के अन्वेषण में 'विऊ - विद्वान' निपुण पुरुष 'अज्जसुए - अद्यश्वः' आज या कल 'संभव - संस्तवम्' विषय भोग की एपमा को 'पहएज्ज-प्रजह्यात् ' छोड देवें ऐसा विचार ही करता है परंतु 'कामी - कामी' कामी पुरुष 'कामे - कामान्' काम भोगों की 'न काम न कामयेत् कामना न करे एवं 'लद्धे वावि - लब्धान् अपि प्राप्त हुए कामभोगों को भी 'अल-अलब्धान' न मिले के समान 'aug - कुतश्चित् ' उसमें कभी आसक्ति न करें ||६|| -अन्वयार्थ इस प्रकार शब्दादिरूप कामों की गवेषणा में निपुण पुरुष ऐसा सूत्रार वणी या प्रमाणे उपदेश आये छे - " एव कामेसण " इत्यादि शब्दार्थ' - ' एवं ' - एवम्' उपर्युक्त प्रस्थी 'कामेसणं - कामेपणाय' शब्द वगेरे विषयोना अन्वेषणुभां 'त्रिऊ - विद्वान्' नियु। ५३ष 'अजसुए - अद्यश्वः' आहे अथवा असे 'संयंत्र - संस्तयम्' विषयलोगनी भेषणाने 'पहपज-प्रजह्यात्' छोडी : येवो विचार न ४२ छे परंतु छोडतो नथी, परंतु 'कामी कामी' अभी पु३ष 'कामे कामान्' अभ लोगोनी 'न काम न कामयेत्' अमना ना उरे व 'लद्धे वावि - लग्धान् अपि प्राप्त थयेस अभलोगोने पशु 'अलवा - अलब्धान्' ना मझ्याना समान 'कण्डुइ-कुतश्चित्' तेभां કદી પણ આસક્તિ ના કરે. ॥ ૬॥ For Private And Personal Use Only -:सूत्रर्थ: એજ પ્રમાણે શબ્દાદિ રૂપ કામભોગાની ગવેષણા (શેાધ, તલાશ) કરવામાં નિપુણ

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