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समकतावासले
विरया वीरा ममुट्टिया कोहकायरियाइ पीसणा। पाणे ण हणति सव्वसो पावोआ विरयाऽभिनिबुडा ॥१२॥
छाया-- विरता वीराः समुत्थिताः क्रोधकातरिकादिपीषणाः । प्राणिनो न घ्नति सर्वशः पापाद्विनिधृत्ता अभिनिर्वृत्ताः ॥१२॥
-अन्वयार्थ(विरया)विरताः-प्राणातिपातादितो विरताः (वीरा) वीराः (समुठिया) समूस्थिताः सम्यगारंभपरित्यागेनोस्थिता इति समुत्थिताः, (कोहकायरियाइ
पूर्व गाथा में विश्वास के कारण रूपसे 'वीर' इतना मात्र कहा है, किन्तु वीर कौन है ? उसका लक्षण या स्वरूप क्या है ? इसका उत्तर देते है'विरया वीरा' इत्यादि।
शब्दार्थ-'विरया-विरताः' जो हिंसादि पापोंसे निवृत्त हैं और 'वीराविराः' कर्मको विशेषरूपसे दूर करनेवाले होनेसे वीर हैं 'समुट्ठिया--समुत्थिताः आरम्भ समारम्भके त्यागसे समुत्थित हैं 'कोहकायरियाइपीसणा--क्रोधकात-- रिंकादिपीषणाः' जो क्रोध और माया आदिको दूर करने वाले है तथा 'पाणेप्राणिनः' प्राणी को अर्थात् द्वीन्द्रि यादि जीवोंको 'सव्वसो--सर्वशः' मन वचन और काय कर्म से 'ण हणंति--न नन्ति' नहीं मारते हैं 'पावाओ--पापात्' सावद्य अनुष्ठानसे 'विरया-विरताः' निवृत्त है 'अभिनिव्वुडा--अभिनिवृताः' वे पुरुष मुक्त जीवके समान है ॥१२॥
પૂર્વ ગાથામાં વિશ્વાસના કારણ રૂપે “વીર” આ શબ્દ માત્રને જ પ્રગ
કરાવવામાં આવે છે. પરંતુ તે વીર કેણ છે? તેનું સ્વરૂપ કેવું છે? આ પ્રશ્નને उत्त२ मापता सूत्रधार अछे 3 "विरया वीरा' त्याह
शहाथ-'विरया-विरताः' हिंसा वगेरे पापाथी निवृत्त छ भने रा-वीरा' भने विशेष ३५थी ४२ ४२१ावा उपाथी वीर छे. 'समुट्ठिया-समुत्थिताः' मारसभामना त्यागथी समुत्थित छ 'कोहकायरियाइ पीसणा-क्रोधकातरिकादि पीषयाः' साथ अने भाया वगेरेने २ ४२वा छतथा 'पाणे-प्राणिनः' प्राणीने अर्थात् येन्द्रीय वगेरे ७वाने 'सव्वसो-सर्वशः' भन, क्यन भने माथा-न हति-न घ्नन्ति' भारत नथी. 'पाधामो-पापात् ' सावध अनुष्ठानथी 'रिया-विरताः निवृत्त छ' अभिनिखुडाभभिनिवृताः' ते, ५३षो भुत ना समान छ. ॥ १२ ॥
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