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समया बोधिमी टीका प्र. श्रु. अ. २ उ. २ स्वपुत्रेभ्य भगवदादिनाथोपदेश ५७ तथा परिग्रहाऽभिलाषुकाणां परिग्रहो दुर्लभो भवतीति । प्रयतमाना अपि परिग्रह न प्राप्नुवन्तीत्यतस्तेभ्योतिनिवृत्तो नियमतः संयमार्थमेव प्रयत्नं कुर्यात् ॥९॥ पुनरपि सूत्रकार आह–'इहलोग इत्यादि ।
मूलम् -
इह लोगे दुहावहं विउ परलोगे य दुहं दुहावहं । विद्धंसणधम्ममेव ते इतिविज्ज को गारमावसे ॥१०॥
छाया-- इहलोके दुःखावहं विद्याः परलोके च दुःखं दुःखावहम्
विध्वंसनधर्ममेव तत् इति विद्वान्कोऽगारमावसेत् ॥ १० ॥ सकता, उसीप्रकार परिग्रह की अभिलाषा करनेवालों को परिग्रह दुर्लभ होता है । जब प्रयत्न करने पर भी परिग्रह नहीं प्राप्त होता तो उस से निवृत्त होकर नियम से संयम के लिए ही प्रवृत्ति करना उचित है ॥९॥
सूत्रकार पुनः कहत हैं--"इह लोग-- इत्यादि ।।
शब्दार्थ-'इह-इह' इस लोगे--लोके' लोक में अर्थात् संसार में 'दुहावई-- दुःखावहम्' दुःख जनक 'परलोगे य-परलोके च' और परलोक में भी 'दुई--दुःखम्' दुःख 'दुहावहम्--दुःखावहम्' दुःख कारक है 'विउ'-विद्याः' ऐसा जानो 'तं--तम्' वह धन 'विद्धंसणधम्ममेव'--विध्वंसनधर्ममेव नाशवान स्वभाव वाला है 'इति विज्ज-इति विद्वान्' यह जानने वाला को -कः' कौन पुरुष 'अगारं--अगारम्' गृहवास में 'आवसे-आवसेत्' निवास कर सकता है ॥१०॥ પકડી શકતા નથી, એજ પ્રમાણે પરિગ્રહની અભિલાષા રાખનારને પરિગ્રહની પ્રાપ્તિ દુર્લભ થઈ પડે છે. જે પ્રયત્ન કરવા છતાં પણ પરિગ્રહની પ્રાપ્તિ થવાની જ ન હોય, તે તેનાથી નિવૃત્ત થઈને સંયમને નિમિત્ત જ અવશ્ય પ્રવૃત્તિ કરવી, એજ ઉચિત છે. ગાથા લાલ qणी सूत्रा२ ४ छ - "इहलेोग" त्या
शहाथ-दह-इह' या 'लोगे-लोके' सोम मर्थात् संसारमा 'दुहावह-दुःखावहम न परलोगे य-परलोके च' भने ५२सोमा ५४ 'दुह-दुःखम्' ५ ॥२४ छ, 'विउ-विद्या' से 'त-तम्त धन विद्ध सणधम्ममेव-विव सनधर्म मेष' नाशवान् स्वभावानुछ ‘इति विज्ज-इति विद्वान्' मा प्रमाणे शुवावा! 'को-क' ध्यो ५३५ 'भगार-अंगारम्, प्रवासमा 'आवसे--आवत्से निवास ४२ छ? ॥१०॥
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