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सूत्रकृताचे
अन्वयार्थ:(महय) महान्तम् (परिगोव)परिगोपम् पंकम् इति (जाणिया) ज्ञात्वा (जावि य) यापिच (इहं) इह अस्मिन् लोके (वंदणपूयणा)वंदनपूजना कायादिभिर्वन्दनं वस्त्रपात्रादिभिश्च सत्कारः, एतत्सर्व कर्मोपशमनं फलमिति ज्ञात्वा तत्राभिमाना न विधेयः, यतः (विउमंता) विद्वान् सदसद्विवेकज्ञः, गर्वः (मुहुमे) सूक्ष्मम् (सल्ले) शल्यम् वर्तते, सूक्ष्मत्वाच्च (दुरुद्धरे) दुरुद्धरं दुःखेनोद्धतुं शक्य ते, अतः (संयवं) संस्तवं परिचयम् (पयहिज्जा) परिजह्यात्-परित्यजेदिति ॥ ११॥
टीका 'महय, महान्तं सांसारिकजीवानां परिचयरूपं महान्तं परिगोप' परिगोपं-पंकम्, गोप: पंकः स द्रव्यभावभेदाद् द्विविधः तत्र द्रव्यतः कुटुंबादिरूपः भावत जो भी 'इहं-इह' इसलोक में 'वंदणपूयणा-वन्दनपूजना वंदन पूजन है उसे भी कर्म के उपशमका फल है ऐसा जानकर 'विउमंता-विद्वान् पुरुष गर्व न करे क्योंकि गर्व 'मुहुमे-सूक्ष्मम्' सूक्ष्म 'सरले-शल्यम्' शल्य है 'दुरुद्धरे-दुरुद्धरं' उसका उद्धार करना कठिन है अतः 'संथवं-संस्तवम्' परिचयको ‘पयहिज-परिजह्यात्' त्याग करे ॥११॥
-अन्वयार्थ__सांसारिक जनों का परिचय महान कीचड है, ऐसा जानकर और यह जो वन्दन पूजा आदि है सो कर्म के उपशम का फल है ऐसा जानकर इसके प्राप्त होने पर अभिमान नहीं करना चाहिए। अभिमान सूक्ष्म शल्य है और सूक्ष्म होने के कारण उसका निकलना बहुत कठिन है, ऐसा समझकर विद्वान् पुरुष परिचय का त्याग करें ॥११॥ .
-टीकार्थसांसारिक जीवों का परिचय महान् पंक (कीचड) है वह पंक दो प्रकार डोभ 'वदणपूरना-वंदनपूजना' न पून छ तेने प६५ मना उपशमनु ३० onाशीने 'विउमंता-विद्वान' भुद्धिमान पु३५ मिलिमान न ४२ भ मलिभान 'सुहमेसक्ष्मम्' सूक्ष्म 'सल्ले-शल्यम्' शल्य छ 'दुरुद्धरे-दुरुद्धरं' तेन धार ४२३॥ ४४१४ छ. मत: संथव-सस्तवम्' पश्यियन। 'पयहिज-परिजाह्यात्' त्याग ४२वी. ॥११॥
___- सूत्राथ' -. સાંસારિક જનેને પરિચય મહાન કીચડ સમાન છે, એવું સમજીને સત અસના વિવેક યુક્ત સાધુએ તેને ત્યાગ કરે જોઈએ. આ જે વન્દન, પૂજન આદિ છે, તે કર્મના ઉપદેશનું ફળ છે, એવું સમજીને વન્દન, પૂજન આદિ થાય ત્યારે અભિમાન કરવું જોઈએ નહીં. અભિમાનસૂકમ શલ્ય (કાટા) સમાન છે. જેમ સૂકમ શલ્યને કાઢવાનું ઘણું જ મુશ્કેલ થઈ પડે છે. એ જ પ્રમાણે અભિમાનને કાઢવાનું કાર્ય પણ દુષ્કર થઈ પડે છે તેથી સાંસારિક પરિચયને ત્યાગ કરે એજ વિદ્વાન પુરુષને भाट लथित छे.
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