________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समयार्थ बोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १ उ. ४ अन्यवादिनां मतनिरूपणम् ४४३
यदपि - उक्तम् - ब्रह्मणः स्वापप्रबोधौ प्रलयप्रभवौ, तदपि प्रमाणहीनतया समुपेक्षणीयमेव । वस्तुतो जगतोऽस्य परिदृश्यमानस्य पृथिव्यादिलोकस्य नैका - न्तिकोत्पादविनाशौ भवतः ।
'नकदाचिदनी जग' दितिवचनात द्रव्यतया जगतः सर्वदैव स्थितिरिति ।
तदेवमनन्तादिकं जगदितिलोकवादं गाथापूर्वार्द्धन निराकृत्य यथावस्थितस्वभावस्याऽऽविर्भावनं गाथापश्चार्थेन प्रकाशयति- 'जे ण ते' इत्यादि । 'से' तेषां सस्थावराणां जीवानां 'परियए' पर्याय: = रूपान्तरम् 'अस्थि' अस्तीति 'अंजू' अज्जु स्पष्टं विद्यते 'जेण' येन पर्यायेण पर्यायमाश्रित्येत्यर्थः 'ते'
यह कहना कि ब्रह्मा का शयन प्रलय है और जागरण सृष्टि है, बह भी प्रमाणशून्य होने के कारण उपेक्षणीय है । वास्तव में दिखाई देने वाले इस पृथ्वी आदि स्वरूप वाले जगत् का एकान्त रूप से न उत्पाद होता हैं, न विनाश । द्रव्य रूपसे जगत् सदैव बना रहता है। कहा भी है- “ न कदाचिदनीदृशं जगत् " इति । ' यह जगत् कभी ऐसा नहीं था, ऐसी बात नहीं है अर्थात् जगत् सदा ऐसा ही बना रहता है।'
इस प्रकार जगत् अनन्तादि रूप है, इस लोकवाद का गाथा के पूर्वार्ध द्वारा freate करके यथार्थता को प्रकट करने के लिए गाथा का उत्तरार्ध कहते हैं-" जेण ते " इत्यादि ।
स और स्थावर जीवों का रूपान्तर होता है, यह स्पष्ट हैं । अतएव पर्याय रूपसे वे स और स्थावर होते हैं, अर्थात् सजीवकर्मोदय से स्थावर हो जाते हैं और स्थावर स रूप से उत्पन्न हो जाते हैं।
“ब्रह्मानुं शयन प्रसय ३५ छे भने लगगु सृष्टि३य (सन३५) छे” मा प्राश्नु કથન પણ પ્રમાણ શૂન્ય હેાવાથી ઉપેક્ષણીય છે. પ્રત્યક્ષ દેખાતા આ પૃથ્વી આદી સ્વરૂપવાળા જગત્ના એકાન્ત રૂપે ઉત્પાદ પણ થતા નથી, અને વીનાશ પણ થતા નથી. द्रव्य ३ गत्नु अस्तित्व सहाण टडी रहे छे. उधुं पशु छे छे - " न कदाचिदनीदृश जगद्" इत्याहि-"मा भगतनुं ही आ प्रास्नु स्व३५ न तु सेवी अर्ध वात नथी” એટલે કે જગત્ સદા એવુ ને એવુ જ રહે છે.
આ પ્રકારે જગત્ અનન્તાહિરૂપ છે, આ લેાવાદનુ ગાથાના પૂર્વાધ દ્વારા નિરાકરણ पुरीने, यथार्थता अउट वा माटे सूत्रार उसे छेडे - " जेण ते" हत्याहि
ત્રસ અને સ્થાવર જીવાનુ રૂપાન્તર થાય છે, આ વાત સ્પષ્ટ છે. ત્રસ જીવા કમેદિયને લીધે સ્થાવર જીવ રૂપે ઉત્પન્ન થઇ જાય છે, અને સ્થાવર જીવા કમયથી ત્રસ જીવ રૂપે ઉત્પન્ન થઇ જાય છે.
For Private And Personal Use Only