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समयार्थ बोधिमो टीका प्र. श्रु. अ. १ उ. ३ प्रकारान्तरेण कृतवादिमतनिरूपणम् -३९३
"पुनरपि कृतवादिमतमेव प्रकारान्तरेण-प्रदर्शयितुं सूत्रकारः प्रक्रमते-- "सए सए" इत्यादि ।
मूलम्
सए सए उवट्ठाणे, सिद्धिमेव न अन्नहा ।
अहो इहेव वसती. सव्वकामसमप्पिए ।१४
छाया"स्वके स्वके उपस्थाने सिद्धिमेव न चान्यथा ।
अधइहैव वशवत्ती सर्वकामसमर्पितः ॥१४ जो कल्याण के अभिलापी हैं, उन्हे उनके शास्त्रोंका किसी भी प्रकार आदर नहीं करना चाहिए, बल्कि उनके शास्त्रों को विष के घडे के समान समझ कर त्याग देना चाहिए ॥१३॥
सूत्रकार पुनः कृतवादियों का मत प्रकारान्तर से दिखलाने के लिये कहते हैं—“सए सए' इत्यादि । ___ शब्दार्थ-'सए सए-स्वके स्वके' अपने अपने 'उवाढणे-उपस्थाने' अनुष्ठान में ही 'सिद्धि-सिद्धिम्' सिद्धिको प्राप्त करते हैं ऐसा वे कहते हैं किन्तु 'न अञ्चहानान्यथा' इस प्रकार से सिद्धि प्राप्त नहीं होती है 'अहो-अधः' मोक्ष प्राप्तिके पूर्व 'इहेव-इहैव' इस लोकमें अथवा इस जन्ममें 'बसवत्ती-वशवर्ती' जितेन्द्रिय हो वही 'सबकाम समप्पिए-सर्वकामसमर्पितः' सर्व सिद्धि सम्पन्न होता है ॥१४॥
છે અને જેઓ કલ્યાણના અભિલાષી છે, તેમણે અન્ય તીર્થિકનાં શાસ્ત્રીને કોઈ પણ પ્રકારે આદર કરે જોઈ એ નહી. પરંતુ તે શાસ્ત્રીને વિષના ઘડા સમાન સમજીને તેમને परित्या ४२वो नये. ॥१३॥
सूत्राशीथी तपाहीमाना भतने अन्य प्रा ट रता -- "सए सए" त्या -
शहाथ-'सए सए-स्वके स्वके' पोत पोताना 'उबट्ठाणे--उपस्थाने अनुष्ठानमा 'सिद्धि-सिद्धिम् सिद्विने प्रात ४२ छ ५२-तुन अन्नहा-नान्यथा अन्य मी प्रथा सिद्धि प्राप्त यती नथी. 'अहो--अधः' मोक्ष प्रासिनी पूर्व । पडसा) 'इहेव--इहैव: मा सोभा अथवा मान्ममा 'वसवत्ती-घशवर्ती स्तिन्द्रिय डाय से 'सबकामसमप्पिए--सर्व कामसमपितः' गधी सिद्धि युत थाय छे. ॥१४॥ सु. ५०
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