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सूत्रकृतागासले -अन्वयार्थ(जहा) यथा (परित्ताणेण) परित्राणेन (वज्जिया) वर्जिताः रहिताः सन्तः (जविगो) जविना अतिशयितवेगवन्तः इतस्ततो धावमाना इत्यर्थः, (मिगा) मृगाः हरिणाः (असंकियाई) अशङ्कितानि-शङ्कारहितान्यपि स्थानानि (संकंति)
__ अब अज्ञानवादियों के मत का निरास करने के लिए सूत्रकार दृष्टान्त कहते हैं-"जविणो,, इत्यादि।
शब्दार्थ--'जहा-यथा' जैसे 'परित्ताणेण-परित्राणेन रक्षक से 'वज्जियावर्जिताः, वर्जित 'जविणो-जविनः' वेगवाले 'मिगा-मृगाः' हरिण 'असंकियाईअशंङ्कितानि' शंका विनाके स्थानों में भी 'संकंति-शङ्कन्ते' शक्या करते हैं तथा 'संकियाई-शङ्कितानि शंका करने योग्य स्थानों में 'असंकिणोअशङ्किनः शंकारहित होते हैं 'परिताणियाणि-परित्राणिकानि' रक्षक युक्त स्थानको. 'संकेते' शङ्कमानाः-शंकास्पद मानते हुवे और 'पासिताणि-पाशितानि पाशयुक्त स्थानको 'असंकिणो-अशकिनः' शंका रहित समझते हुवे 'अण्णाण भयसंविग्गा-अज्ञानभयसंविग्नाः' अज्ञान और भयसे उद्विग्न ऐसे वे मृग 'तहिं तहि-तत्र तत्र' उन उन पाशयुक्त स्थानों मेंही 'संपलिंतिसंपर्यन्ते' जा फसते हैं ॥६-७॥
अन्वयार्थ---- जैसे त्राणसे रहित वेगवान् अर्थात्इधर उधर दौड़ते हुए हरिण शंकारहित स्थानों में शंका करते हैं और शंका के स्थानों में निःशंक होते हैं, रक्षा के
वे सूत्रा२ दृष्टान्त द्वारा अज्ञानवादी मोना मतनु न ४२-” जविणे!" त्यादि
शहाथ---'जहा यथारे रीते 'परित्ताणेण-परित्राणेन' २२४ 'वजिया-वर्जिताः विनाना 'जाविणो-जविनः' वेशा'मिगा-मृगाः' । 'असं कियाई-अशङ्कितानि श' विनाना स्थानमा प 'सक ति-शते । रामेछ. तथा 'स कियाई-शतितानि' श ४२१॥ योग्य स्थानमा 'असकिणो-अशनिः ' । नाना २९ छे. 'परिताणियाणि-परित्राणिकानि' २६४ पाणा स्थान ने 'संकता-शङ्कमानाः' २२५४ भाने छ. अने पासिताणि-पाशितानि शा॥ स्थान मा 'अस किणो-अशकिना' श विनानी मानीने 'अण्णाणभयस विग्गा-अज्ञानभयस विग्नाः' अज्ञान मने मय थी आयशा मे ते भृगो तहि तहिं तत्र-तत्र' ते ते पा॥स्थानमा 'संपलिति-संपर्यन्ते' इस नय छ. 14--01
-२मन्वयार्थ - જેમ કે - ત્રણ રહિત (નિરાધાર), અહીં નહી અતિ વેગથી દોડતું મૃગ શંકા ન કરવા જેવાં સ્થળમાં શંકા સેવે છે, અને જે સ્થાને શંકા કરવાને જે છે એની પ્રત્યે નિશંક
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