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सूत्रकृताङ्गसूत्रे
अन्वयार्थः पूर्ववदेव । व्याख्या स्पष्टा, नवरं ते वादिनः संसारपारगाः संसारस्य - नरामरनारकतिर्यक रूपस्य पारगाः = पारगामिनो न भवन्ति ॥ २१ ॥ पुनरप्याह - ' तेणावि' इत्यादि ।
मूलम् -
तेणावि संधि णचाणं न ते धम्मविओ जणाः । जे ते उ वाइणो एवं न ते गभस्स पारगा ॥२२॥
छाया
तेनापि संधि ज्ञात्वा न ते धर्मविदो जनाः ।
ये ते तु वादिन एवं न ते गर्भस्य पारगा ||२२||
वे लोक धर्म को जानने वाले नहीं हैं 'जे ते उ एवं वाइणो ये ते तु एवं वादिनः ' जो पूर्वोक्त सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं 'न ते संसार पारगा ते संसार पारगाः न' वे संसार को पार नहीं कर सकते हैं ||२१||
-:अन्वयार्थः
"
इस गाथा का अर्थ पूर्ववत् ही है । पिछली गाथा में “ ओहंतराऽऽहिया " पाठ था, उसके स्थान पर यहाँ " संसारपारगा " पाठ है । अतः इसका अर्थ इस प्रकार है वे वादी मनुष्य देव नारक और तिर्यंचगतिरूप संसार से पारगामी नहीं होते हैं। इसकी व्याख्या स्पष्ट है। शेष सब पूर्ववत् समझना चाहिए ||२१||
फिर कहते हैं- " ते णावि " इत्यादि ।
शब्दार्थ - 'ते ते' वे 'संधि - संधिम्' सन्धिको 'णावि णच्चा - नापि ज्ञात्वा' नहीं जानकर क्रियामें प्रवृत्त हैं 'ते जणा ते जनाः' वे लोग 'धम्मविओ - धर्मविदः' धर्म के तेवा बोओ धर्मना रहस्य ने भागवावाणा नथी, 'जे ते उ एवं वाइणो- ये ते तु एवं वादिनः । पूर्वो सिद्धान्तनुं प्रतिपाहन उरे छे, 'न ते संसारपारगा-ते संसारपारगाः न' तेथे संसारने पार उरी शता नथी ||२१||
- अन्वयार्थ -
या गाथाना अर्थ पूर्ववत् ४ छे. आगदी गायामां 'ओह 'तराऽऽहिया' पाहतो, तेनी भभ्यामे या गाथाभां “संसारपारगा" पाठ थे "संसारपारगा" इत्यादि गाथानो અર્થ આ પ્રમાણે છે. તે અન્ય મતવાદી લોકો મનુષ્ય, તિર્યંચ નારક અને દેવ, આ ચાર તિ રૂપ સંસારને પાર કરીને મેક્ષની પ્રાપ્તિ કરી શકતા નથી. આ ગાથાના અથ સ્પષ્ટ છે. બાકીનું બધુ કથન આગલી ગાથામાં કહ્યા પ્રમાણે જ સમજવું ॥ ગાથા ૨૧ ॥
पणी सूत्रअर उहे छेडे - तेनावि" त्याहि
शब्दार्थ- 'ते ते' तेथे 'संधि- संधिम्' संधीने 'पाणिच्चा नापि atat' एया विनागडियामां प्रवृत्त थाय छे 'ते जणा ते जनाः' ते बोडी 'धम्मविओ - धर्म'
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